सबसे तेज़ वृद्धि दर वाली जीडीपी कुछ ही वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। विकासशील देशों पर या जी-7 देशों पर नज़र डाली जाए तो साफ दिखता है कि -23.9 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ यह स्पेन से भी नीचे जा चुका है।
पूंजी बाज़ार ने शायद यह पहले ही मान लिया है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पहले से बहुत कम होगी। यह इससे समझा जा सकता है कि बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदनशील सूचकांक सेंसेक्स पहले ही 899.12 अंक गिरा।
जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद पर आम जनता ही नहीं, बैंक व वित्तीय संस्थाएं, उद्योग जगत, पूंजी बाज़ार, विदेश निवेशक, विदेशी क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी सबकी नज़र रहती है। क्यों? आख़िर क्या होता है जीडीपी?
क्या भारतीय जनता पार्टी ने जानबूझ कर देश की आर्थिक स्थिति की ग़लत तसवीर पेश की? क्या उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पुराने आँकड़ों को मौजूदा आर्थिक स्थिति कह कर पेश किया है?
जुलाई के महीने में पचास लाख सैलरीड लोग बेरोजगार हो गए। अप्रैल से अब तक ऐेसे 1.9 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं। नौकरी जा रही हैं। उनमें भी अच्छी नौकरियां जा रही हैं।जिनकी नौकरी बची भी हैं उनका वेतन कम हो रहा है। नए लोगों के लिए रोजगार का बाजार बहुत मुश्किल होता जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की नब्ज पढ़नेवाले देश के सबसे अच्छे विशेषज्ञ और CMIE के MD & CEO महेश व्यास से आलोक जोशी की बातचीत। Satya Hindi
पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के लिए तीन उपाय सुझाए हैं। उनका मानना है कि आर्थिक संकट को और गहराने से रोकने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को ये उपाय तुरन्त करने चाहिए।
लॉकडाउन, प्रवासी मज़दूरों का अपने गृह राज्यों के लिए पलायन और बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरी जाने के बीच अर्थव्यवस्था के बहुत ही धीमी गति से ही सही, पर पटरी पर लौटने के संकेत मिल रहे हैं।