अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने आग में घी डालने का काम किया है। उसने भारत-चीन सीमा को लेकर ऐसा भड़काऊ बयान दे दिया है कि यदि भारत उस पर अमल करने लगे तो दोनों पड़ोसी देश शीघ्र ही आपस में लड़ मरें।
डोनल्ड ट्रंप के दौरे के बाद भारत और अमेरिका ने आर्थिक या सामरिक क्षेत्र में किसी नाटकीय समझौते की घोषणा या कोई सहमति का एलान तो नहीं किया लेकिन इससे राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे की अहमियत कम नहीं हो जाती।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की यात्रा को लेकर जैसा पहले से अंदेशा जताया जा रहा था वैसा ही हुआ। यानी रक्षा सौदे पर सहमति बनी, लेकिन दूसरे व्यापारिक मुद्दों पर सिर्फ़ बात हुई और रिश्ते मज़बूत करने की बात कही गई।
डोनल्ड ट्रंप के भारत पहुँचने पर भव्य स्वागत हुआ, लेकिन अब क्या व्यापार और रिश्ते की बात भी कुछ हो पाएगी? कहीं यह यात्रा ट्रंप की घरेलू चुनावी का एक शो भर तो नहीं रह जाएगा? या फिर कुछ विशेष रिश्ते में गरमाहट आएगी। देखिए ट्रंप की यात्रा पर विशेष रिपोर्ट।
ट्रंप के कार्यकाल ख़त्म होने के समय उनकी भारत यात्रा क्यों हुई? यदि व्यापार समझौता होगा भी तो किसके पक्ष में होगा? 'अमेरिका फ़र्स्ट' का नारा लगाते रहने वाले भारत को क्या कुछ देने को तैयार होंगे या केवल सबकुछ अपने पक्ष में कर लेंगे? देखिए सीएनबीसी के पूर्व संपादक और आर्थिक विशेषज्ञ आलोक जोशी की रिपोर्ट।
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने कार्यकाल के अंतिम साल में भारत का दौरा करने का फ़ैसला सामरिक या आर्थिक रिश्तों के नज़रिये से अहम माना जा रहा है लेकिन ट्रंप केवल इन्हें प्रगाढ़ बनाने के इरादे से ही भारत आ रहे हैं, यह कहना सटीक नहीं होगा।
जी-20 की बैठक से पहले ट्रंप ने ट्वीट किया कि जो भारत कर रहा है वह अस्वीकार्य है, लेकिन जब बैठक में पहुँचे तो मोदी से गले मिले और तारीफ़ की। यदि मोदी दोस्त हैं तो ट्रंप भारत पर डंडा क्यों चलाते रहते हैं?