छह महीने से अधिक वक़्त तक पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में भारतीय सेनाओं के साथ तनातनी के बाद चीनी सेना अब पीछे लौटेने को तैयार हो गई है। टकराव के सभी सीमांत इलाकों से दोनों देशों के सेनिक पीछे हट जाएंगे।
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चीन ने सैन्य इरादों से किये जा रहे ढाँचागत निर्माण का सवाल खड़ा कर पूरे विवाद को नया मोड़ देने की कोशिश की है। चीन ने साफ़ कहा है कि दोनों देशों के बीच जो मौजूदा सैन्य तनाव चल रहा है उसकी जड़ में भारत द्वारा ढाँचागत निर्माण ही वजह है।
चीन ने कहा है कि 'वह लद्दाख में भारत द्वारा ग़ैरक़ानूनी तरीके से निर्मित केंद्र-शासित क्षेत्र को स्वीकार नहीं करता है।' इसके साथ ही चीन ने कहा है कि 'सीमा पर बनी ढाँचागत सुविधाएं ही भारत-चीन सीमा विवाद की जड़ है।'
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लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार कर चीनी सेना के भारत में घुस आने के 5 महीने बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार इस पर अपनी ही जनता से जानकारियाँ छिपाने की नीति पर चल रही है।
क्वैड की बैठक में कोई चीन से पंगा लेने को तैयार नहीं था। भाषणों का सार यही था कि ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ में ‘क़ानून का राज’ चलना चाहिए और समुद्री मार्ग सबके लिए खुले होने चाहिए।
कोरोना महामारी से निबट लेने के बाद दुनिया में देशों के बीच रिश्तों के समीकरण कैसे बनेगें, इसकी एक झलक तोक्यो में 6 अक्टूबर को चार देशों- अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत के विदेश मंत्रियों की दूसरी साझा बैठक से मिली है।
चीन के साथ तनाव और वास्तविक नियंत्रण रेखा के आर- पार हज़ारों सैनिकों की तैनाती के बीच भारत ने टोक्यो में हुई क्वैड बैठक में नाम लिए बग़ैर चीनी घुसपैठ का मुद्दा उठा कर बीजिंग को कड़ा संकेत दे दिया है।
सीमा और भूभाग के मसले पर 29 सितम्बर को चीन ने अचानक अपना रुख कड़ा करने के एक दिन बाद अपने तेवर नरम किये हैं। उसने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की 10 सितम्बर को मास्को में हुई बैठक के बाद बनी पांच- सूत्री सहमति को लागू करने पर ज़ोर दिया है।