अभी 108 पूर्व नौकरशाहों ने पीएम मोदी के नाम अपील जारी कर उनसे नफरत की राजनीति बंद कराने को कहा था। शनिवार को 197 पूर्व नौकरशाह पीएम मोदी के समर्थन में आ गए और उनकी जमकर तारीफें कीं।
108 पूर्व राजनयिकों ने पीएम मोदी को नफ़रत की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। एक खुले खत में पीएम मोदी को आगाह करते हुए नौकरशाहों ने लिखा है की प्रधानमंत्री चुप्पी बड़े खतरों को जन्म दे सकती है। आखिर पीएम मोदी क्यों चुप हैं।
क्या क्रिकेट में भी धार्मिक आधार पर भेदभाव होने लगा है। खंडवा में बीजेपी विधायक की ओर से आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट में मुसलिम खिलाड़ियों के साथ ऐसा ही होने की बात सामने आई है।
नफ़रत समाज में किस हद तक और कहाँ-कहाँ घुस गई है? इस सवाल का जवाब शायद झारखंड में स्थानीय प्रशासन के चुनाव में एक प्रत्याशी के नामांकन भरने के दौरान एक वीडियो से मिल सकता है।
प्रसिद्ध चिन्तक प्रताप भानु मेहता ने अपने हालिया लेख में इस बात पर चिन्ता जताई है कि धार्मिक जुलूसों की आड़ में देश किस तरफ बढ़ रहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि साम्प्रदायिकता पर लिखना अब फिजूल बात हो गई है। वो चिन्तित हैं कि विचाराधारत्मक हिंसा का मुकाबला करने कोई सामने नहीं आ रहा है।
क्या अदालत के जमानत की शर्त वाले आदेशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए नफ़रती भाषण दिया जा रहा है और कथित 'नफरती' धर्म संसद का का आयोजन किया जा रहा है? यति नरसिंहानंद विवाद में फिर से क्यों?
संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में लेख में क्यों लिखा कि अयोध्या में राम मंदिर की लड़ाई से जो भाग निकले वो अब राम के नाम पर तलवारें निकाल रहे हैं? राउत ने किस पर आरोप लगाया कि चुनाव जीतने के लिए नफ़रत की राजनीति की जा रही है?
धार्मिक शोभायात्राओं में नफ़रती भाषा और मुसलिम विरोधी नारों पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। रवीश कुमार ने ऐसी ही एक शोभायात्रा में मुसलिमों के ख़िलाफ़ गालियाँ देने वालों के नाम ख़त लिखा है। पढ़िए उनके शब्दों में ही....
मध्य प्रदेश के खरगोन में आज रामनवमी जुलूस के दौरान कुछ उपद्रवियों ने पथराव किया, उसके बाद शहर में हिंसा भड़क उठी। शहर में हालात को काबू करने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है। देश के कई राज्यों में पिछले एक हफ्ते के अंदर कई साम्प्रदायिक घटनाएं हो चुकी हैं।