कर्नाटक के स्कूल में बजरंग दल ने हथियार ट्रेनिंग कैंप आयोजित किया। इस मामले में पुलिस में लिखित शिकायतें की गई हैं। पुलिस ने इसकी जांच शुरू कर दी है। मामले ने तूल पकड़ लिया है।
आशरीन सुल्ताना से शादी करने पर नागराजू की हत्या का मुसलिम समाज ने निंदा की। वे समर्थन में नहीं आए, बल्कि विरोध किया। लेकिन क्या अब नागराजु की हत्या का इस्तेमाल मुसलिम विरोधी नफ़रत के लिए नहीं किया जा रहा है?
अभी 108 पूर्व नौकरशाहों ने पीएम मोदी के नाम अपील जारी कर उनसे नफरत की राजनीति बंद कराने को कहा था। शनिवार को 197 पूर्व नौकरशाह पीएम मोदी के समर्थन में आ गए और उनकी जमकर तारीफें कीं।
108 पूर्व राजनयिकों ने पीएम मोदी को नफ़रत की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। एक खुले खत में पीएम मोदी को आगाह करते हुए नौकरशाहों ने लिखा है की प्रधानमंत्री चुप्पी बड़े खतरों को जन्म दे सकती है। आखिर पीएम मोदी क्यों चुप हैं।
क्या क्रिकेट में भी धार्मिक आधार पर भेदभाव होने लगा है। खंडवा में बीजेपी विधायक की ओर से आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट में मुसलिम खिलाड़ियों के साथ ऐसा ही होने की बात सामने आई है।
नफ़रत समाज में किस हद तक और कहाँ-कहाँ घुस गई है? इस सवाल का जवाब शायद झारखंड में स्थानीय प्रशासन के चुनाव में एक प्रत्याशी के नामांकन भरने के दौरान एक वीडियो से मिल सकता है।
प्रसिद्ध चिन्तक प्रताप भानु मेहता ने अपने हालिया लेख में इस बात पर चिन्ता जताई है कि धार्मिक जुलूसों की आड़ में देश किस तरफ बढ़ रहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि साम्प्रदायिकता पर लिखना अब फिजूल बात हो गई है। वो चिन्तित हैं कि विचाराधारत्मक हिंसा का मुकाबला करने कोई सामने नहीं आ रहा है।
क्या अदालत के जमानत की शर्त वाले आदेशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए नफ़रती भाषण दिया जा रहा है और कथित 'नफरती' धर्म संसद का का आयोजन किया जा रहा है? यति नरसिंहानंद विवाद में फिर से क्यों?
संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में लेख में क्यों लिखा कि अयोध्या में राम मंदिर की लड़ाई से जो भाग निकले वो अब राम के नाम पर तलवारें निकाल रहे हैं? राउत ने किस पर आरोप लगाया कि चुनाव जीतने के लिए नफ़रत की राजनीति की जा रही है?