जेएनयू के बाद जामिया में एसएफआई ने आज बुधवार को शाम 6 बजे बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दिखाने की घोषणा की थी। लेकिन उससे पहले छात्रों ने शाम 4 बजे प्रदर्शन किया। जामिया प्रशासन ने फिल्म दिखाने पर रोक लगा दी है। दिल्ली पुलिस ने छात्र नेताओं को हिरासत में लिया है। देश के तमाम हिस्सों में सरकार की इच्छा के विरूद्ध इस फिल्म का प्रसारण जमकर हो रहा है।
आख़िर बीबीसी की फिल्म को रुकवाने से किसको फ़ायदा होगा ? इस फिल्म में एक भी तथ्य नया नहीं है ? एक भी ऐसी चीज नहीं है जो लोगों को पता न हो ? जब सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मोदी को मिल चुकी है तो फिर डर काहे का ? आशुतोष के साथ चर्चा में विनोद अग्निहोत्री, अरविंद सिंह और पंकज श्रीवास्तव ।
गुजरात के दंगों की गुप्त ब्रिटिश जांच और उस पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री पर भले ही भारत में बैन लग गया हो लेकिन इस बहाने गुजरात दंगों को लेकर वो तमाम सवाल फिर से उभर आए हैं जो उस समय उठे थे...और आज भी उठ रहे हैं।
इंग्लैंड में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ प्रसारित हो रही है तो भारत में ‘गांधी गोडसे एक युद्ध’ 26 जनवरी को रिलीज हो रही है। एक भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो दशक पहले गुजरात दंगे में बतौर सीएम उनकी भूमिका को लेकर सवालों के कठघरे में खड़ा करता है। तो, दूसरा 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करता है।
गुजरात नरसंहार 2002 पर बीबीसी की डॉक्युमेंट्री काफी चर्चा में है। लेकिन उससे ज्यादा चर्चा अब उसके भारत सरकार के दबाव में आने की हो रही है। द टेलीग्राफ अखबार ने अपनी रिपोर्ट में इसकी चर्चा की है कि बीबीसी से सवाल तो पूछे ही जाएंगे कि आखिर उसने भारत में उस डॉक्युमेंट्री का प्रसारण क्यों रोका। पढ़िए पूरी रिपोर्टः
बीबीसी की डाक्यूमेंटरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से कठघरे में क्यों खड़ा कर दिया है? सुप्रीम कोर्ट की “क्लीन चिट” के बावजूद मोदी पर लगे आरोप धुलते क्यों नहीं हैं? क्या किसी साज़िश की वज़ह से ऐसा है? क्या गुजरात दंगों में उनकी भूमिका को लेकर संतोषजनक उत्तर न मिलने की वज़ह से बार-बार मोदी शक़ के दायरे से बाहर नहीं आ पा रहे?
प्रधानमंत्री मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ने इतना तूल क्यों पकड़ा? आख़िर यह डॉक्यूमेंट्री क्यों बनानी पड़ी? जानिए विदेश मंत्रालय ने किस आधार पर इसे प्रोपेगेंडा कहा।
विकास की बात करने वाले मोदी शाह गुजरात चुनाव में अंततः अपने पुराने हथकंडे पर लौट आए है . गृह मंत्री को अब दंगा याद आ गया है और इसका इस्तेमाल चुनावी गोलबंदी के लिए किया जा रहा है .आज की जनादेश चर्चा .
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात चुनाव के प्रचार के दौरान दंगों का जिक्र क्यों किया? क्या इससे बीजेपी की हताशा दिख रही है या बीजेपी ने ये ब्रह्मास्त्र चल दिया है? Sharat ki Do Took में इसी पर चर्चा.
2002 के वीभत्स गुजरात दंगों की याद देश के गृहमंत्री अमित शाह ने फिर से दिला दी है। इसे गुजरात के मौजूदा विधानसभा चुनाव के दौरान याद दिलाया गया है। दो दशक बीच चुके हैं। एक पूरी नई पीढ़ी सामने आ चुकी है, क्या वो इन दंगों का सच जानती है, उस दंगे को जानने की जरूरत हैः
गृहमंत्री अमित शाह को गुजरात दंगे क्यों याद आ रहे हैं? वे क्यों कह रहे हैं कि 2002 में उन्होंने सबक सिखा दिया? उन्होंने किसको सबक सिखाया और कैसे सिखाया? क्या वे और उनकी पार्टी फिर से हिंदू-मुसलमान पर उतर आई है? क्या चुनाव प्रचार के आख़िरी चरण में अब इस तरह की और भी बयानबाज़ी बीजेपी नेता करेंगे?
गुजरात चुनाव में अब क्या '2002 के दंगे' पर बयानबाजी़ शुरू होगी? आख़िर गृहमंत्री अमित शाह ने '2002 में सबक़ सिखाने' का ज़िक्र क्यों किया? जानिए इसके क्या मायने हैं।
गुजरात काडर के आईपीएस अफसर सतीश चंद्र वर्मा को 30 सितंबर को रिटायर होने से पहले केंद्र सरकार ने उनके एक पुराने इंटरव्यू के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया। हालांकि इस मामले में एक मामला हाईकोर्ट में चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार 19 सितंबर को उनकी बर्खास्तगी पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी है।