अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने की कोशिशों की आलोचना करने पर अमोल पालेकर को रोका गया था। आपातकाल की शुरुआत ऐसे ही होती है। उसे रोकने के लिए बोलते रहना ज़रूरी है।
किसी भी क़िस्म के सत्ताधारियों का स्वप्न एक ऐसी दुनिया है जहाँ कोई, कोई भी न हँसे। कम से कम ऐसी दुनिया जहाँ उन पर कोई न हँसे, वे अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ हँसी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं।