फिल्मों में बिहार को पेश करने का नजरिया आज भी नहीं बदला। ये भी कह सकते हैं कि डायरेक्टर अपना नजरिया बदलने को तैयार नहीं। मनोज वाजपेयी की इस फिल्म में कुछ भी नया नहीं है। इसलिए डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी की पूरी समीक्षा पढ़कर अपना निचोड़ निकाल लीजिए।
कैसी है संजय लीला भंसाली की हीरा मंडी, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लाहौर के हीरा मंडी के रेड-लाइट जिले में तवायफों के जीवन के बारे में पीरियड ड्रामा है। संजय लीला भंसाली छोटे परदे पर कितनी भव्यता दिखा सके?
हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स ने भी फिल्मों का उपयोग किया था। इसके नतीज़े बेहद ख़राब रहे थे। क्या फिल्मों का इस्तेमाल अब प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए किया जा रहा है? पढ़िए, रजाकार फिल्म की समीक्षा।
अमर सिंह चमकीला एक बायोपिक है। चमकीला ने दो शादियां की थीं। उन्होंने दूसरी शादी की तो अपनी पहली पत्नी के बारे में दूसरी को नहीं बताया था। चमकीला को समाज कैसे देखता है? पढ़िए फिल्म की समीक्षा।
इसी सप्ताह लगी फिल्म दो और दो प्यार एक अंग्रेजी फिल्म द लवर्स का एडॉप्शन है। पर यह फिल्म तो बनी ही हिंग्लिश में है ! ऐसा कैसा एडॉप्शन ? जिसको अंग्रेज़ी आती होगी, वह इंग्लिश लेगा ! पुराना विषय है, एक ख़ास वर्ग को फिल्म पसंद आएगी। प्रकाश हिंदुस्तानी की फ़िल्म समीक्षा
ओटीटी पर दिखाई जा रही फिल्म चमकीला पंजाब के एक दलित गायक की दिलचस्प बायोग्राफी है। इसकी ख़ूबियों के बारे में बता रहे हैं फिल्म समीक्षक प्रकाश हिंदुस्तानी-
अमर सिंह चमकीला एक बायोपिक है। चमकीला ने दो शादियां की थीं। उन्होंने दूसरी शादी की तो अपनी पहली पत्नी के बारे में दूसरी को नहीं बताया था। पढ़िए फिल्म की समीक्षा।
गुरुवार को रिलीज़ हुई फ़िल्में मैदान और बड़े मियां छोटे मियां कैसी हैं? क्या इन्हें देखने के लिए पैसे खर्च करना ठीक है? बता रहे हैं फ़िल्म समीक्षक प्रकाश हिंदुस्तानी
आज़ादी के बाद 1952 से 1962 तक भारत के फुटबॉल खिलाड़ी एशियन गेम्स और ओलम्पिक में बिना जूतों के कैसे खेलते और घायल होते रहे, फुटबॉल फेडरेशन की राजनीति कैसी होती थी, इसको 'मैदान' फिल्म में समझा जा सकता है।