किसानों ने बार कहा था कि वे उनकी मांग माने बिना बॉर्डर्स से नहीं हिलेंगे। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव और इसमें संभावित राजनीतिक नुक़सान को देखते हुए बीजेपी और मोदी सरकार को ये फ़ैसला लेना पड़ा।
आंदोलनकारी किसान नेता क्यों कह रहे हैं कि जब तक संसद स्वयं इस क़ानून को रद्द नहीं करेगी, यह आंदोलन चलता रहेगा? क्या उन्हें लग रहा है कि सरकार दांव पेंच दिखाकर कृषि-क़ानूनों को बनाए रखेगी?
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने वालों को मोदी सरकार के समर्थकों ने खालिस्तानी, नक्सली, देशद्रोही क्यों कहा था? जानिए, अब इन क़ानूनों की वापसी के क्या हैं मायने।
कृषि क़ानूनों को वापस लेने से क्या नरेंद्र मोदी की छवि पहले से बेहतर हुई है या उनकी छवि को चोट पहुँची है? ऐसा क्यों लगता है कि उनके समर्थक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मनमर्जी की कार्यशैली की वजह से ही कृषि क़ानूनों को अंत में रद्द करना पड़ा, रद्द करने के तरीके से भी उनकी यह कार्यशैली ही उजागर होती है।
कृषि कानून वापस होने का एलान पर किसानों की एमएसपी की मांग बरकरार है .सात सौ से ज्यादा किसान आंदोलन में शहीद हो चुके है .ऐसे में किसान मोदी को माफ कर देगा ?किसान आंदोलन से जो राजनीतिक माहौल बन चुका है वह क्या ठंडा पड़ जायेगा
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तीनों कृषि क़ानूनों पर ताज़ा घोषणा के बाद भी आख़िर कृषि आंदोलन तुरंत क्यों नहीं ख़त्म होगा? जानिए, किसान नेता राकेश टिकैत ने क्या कहा।
बीजेपी और मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती किसान आंदोलन है। दोनों चाहते हैं कि किसान आंदोलन का कोई हल जल्दी निकले। क्योंकि बीजेपी को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब के चुनाव में इसके असर को लेकर काफी चिंता है।
हरियाणा में किसानों ने भाजपा सांसद को फिर निशाने पर लिया .पश्चिमी यूपी में पहले ही एलान हो चुका है .farmers bjp clashऐसे में भाजपा नेताओं के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है .लखीमपुर के बाद हरियाणा की आज की घटना को देखते हुए यूपी में चुनाव प्रचार कैसे करेगी भाजपा ?आज की जनादेश चर्चा इसी पर