क्या दिल्ली के बॉर्डर पर जन्म लेने वाले किसान धरने भी इक्कीसवीं सदी के चम्पारण में विकसित होने की दिशा में है? क्या यह धरना भी बीजेपी की घराना पूंजीवाद की राजनीति के ऊपर चढ़े हिन्दूवाद के मुलम्मे की चूलें हिला कर रख देने की तैयारी कर रहा है?
मोदी कहते हैं कि विपक्ष ने गुमराह किया। मोदी की बात किसान मानते क्यों नहीं? आशुतोष के साथ चर्चा में राजीव पांडे, घनश्याम तिवारी, सुरेंद्र राजपूत और आलोक जोशी।
किसान आंदोलन से संबंधित गुरुवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान गतिरोध को हल करने के लिए एक बहुत ही समझदारी भरा रास्ता दिखाया। सरकार को इन क़ानूनों के कार्यान्वयन को रोकना चाहिए।
किसान आंदोलन के बीच ही नये कृषि क़ानूनों की कॉपी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में फाड़ दी। केजरीवाल ने ऐसा क्यों किया, वह इतने आक्रामक क्यों हैं?
देश की केंद्रीय और राज्यों की सेवाओं में IAS, IPS चुने जाने के बाद सेवारत रह चुके और अब सेवानिवृत्त हुए अफ़सरों ने आंदोलन कर रहे किसानों को खालिस्तानी कहने पर लिखित आपत्ति जताई है। सैकड़ों हस्ताक्षरों से युक्त पत्र जारी करके उन्होंने इस संबंध में लाये गये तीनों क़ानूनों में प्रक्रियात्मक दोष गिनाए हैं । इन्हीं में से एक हस्ताक्षरकर्ता IAS राजू शर्मा से शीतल पी सिंह ने बातचीत की।
यदि केंद्र सरकार के दावे और ज़िद के अनुसार कृषि क़ानून वाकई किसानों के हित में हैं और कृषि उत्पाद विपणन समिति क़ानून को ख़त्म करने से उन्हें बड़ा बाज़ार मिलेगा और ऊँची कीमतें मिलेंगी तो बिहार के किसान बदहाल क्यों हैं?
खेती से जुड़े तीनों क़ानूनों में कई कमियाँ हैं जिसके चलते बड़े व्यापारी उनका दुरुपयोग कर सकते हैं। किसान से बकाए की वसूली रेवेन्यू की तरह करने की व्यवस्था के कारण किसान को जेल में भी भेजा जा सकता है। बता रहे हैं क़ानून विशेषज्ञ शैलेंद्र यादव।
कल मैं किसानों के जमावड़े के बीच था। घंटों रहा। वे वहाँ लाखों की तादाद में आ-जा रहे हैं। हज़ारों वहाँ अनवरत जमे हैं। किसी पंजाबी देहाती मेले जैसा दृश्य है। ये किराये पर ला सकने वाले लोग नहीं हैं! शीतल पी सिंह की आँखों देखी।
नये कृषि क़ानूनों पर सरकार के साथ गतिरोध दूर नहीं होने पर किसानों ने अपना आंदोलन अब और तेज़ कर दिया है। राजस्थान में किसानों का मार्च शुरू होने से दिल्ली-जयपुर हाइवे पर रविवार को जाम लग गया।
कृषि क्षेत्र में लाए गए तीन सुधारवादी क़ानूनों के विरोध में किसान 26 नवंबर से दिल्ली घेरे हुए हैं। कई दौर की वार्ता के बाद भी अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। सैकड़ों किसान संगठनों ने भारत बंद भी किया।
किसानों के 8 दिसंबर के भारत बंद के समर्थन में विपक्षी दल भी आ गए हैं। इसका समर्थन कांग्रेस से लेकर अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप, तृणमूल, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, टीआरएस, डीएमके और कई वामपंथी दलों ने भी किया है।
किसान आन्दोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत 29 नवम्बर को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में तीनों क़ानूनों को भाग्य बदलने वाला बताया, लेकिन क्या किसान प्रधानमंत्री का विश्वास करेंगे?
नए कृषि क़ानूनों से क्या कृषि क्षेत्र में कार्पोरेट का बोलबाला हो जाएगा, कांट्रैक्ट खेती होने लगेगी और किसानों के हितों को भारी धक्का लगेगा? क्या सारा लाभ बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ले जाएँगी और किसान तथा छोटे व्यापारी देखते रह जाएँगे?