सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जिन नये कृषि क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाई है उस फ़ैसला आज आएगा। फ़ैसले पर नज़र इसलिए है कि कृषि क़ानूनों पर रोक लगेगी या नहीं।
कृषि क़ानून 2020 को वापस लेने की माँग पर अड़े किसानों को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि "इन क़ानूनों को सरकार किसी कीमत पर रद्द नहीं करेगी, किसान चाहें तो सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दें।"
किसानों ने अब सिंधु बॉर्डर से आगे बढ़ने की चेतावनी दी है। यानी दिल्ली में घुसने का अल्टीमेटम। किसान यूनियनों ने कहा है कि यदि उनकी माँग नहीं मानी जाती है तो 26 जनवरी को दिल्ली में घुसेंगे।
मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल वी. पी. सिंह वडनोर ने बीजेपी के प्रचार से प्रभावित होकर दूरसंचार के टॉवरों से तोड़फोड़ के मामले में राज्य के आला अफ़सरों को तलब किया है।
केंद्र सरकार के जिन तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हीं क़ानूनों के ख़िलाफ़ केरल की विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार इन विवादास्पद क़ानूनों को वापस ले।
बुधवार को 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच छठे दौर की बातचीत में इस पर सहमति बनी कि पराली जलाने के मामले में किसानों को छूट मिलेगी और बिजली पर मिल रही सब्सिडी मिलती रहेगी।
सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आख़िरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ़ से तूल पकड़ेगा।
आज किसानों के आंदोलन के समय भी एक तबक़ा तीन कृषि क़ानूनों का विरोध महज़ इस आधार पर कर रहा है कि इससे कॉर्पोरेट घरानों की ज़ेबें भरेंगी और किसान कंगाल हो जायेगा। कृषि क़ानून में कई ख़ामियाँ हैं।
ज्यों-ज्यों किसान आंदोलन अपने चरम की ओर बढ़ रहा है, केंद्र सहित बीजेपी की राज्य सरकारों के प्रचार हमले बढ़ते ही जा रहे हैं। प्रचार की ये तोपें अमूमन तथ्य और वास्तविक आंकड़ों की जगह झूठ के बारूद और गोलों से भरी होती हैं।
कृषि क़ानून 2020 के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन की जगह टिकरी बॉर्डर के पास पंजाब के एक वकील ने रविवार को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। उनके कथित आत्महत्या नोट में कहा गया है कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों की बातें सुननी चाहिए।'
किसान फिर से वार्ता करने को तैयार हुए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसान यूनियनों ने 29 दिसंबर को वार्ता फिर से शुरू करने की घोषणा की है। वार्ता अनुकूल नहीं होने पर किसानों ने आंदोलन तेज़ करने की चेतावनी दी है।