केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में जारी किसानों के आंदोलन को छह महीने पूरे हो चुके हैं। यह आंदोलन न सिर्फ़ मोदी सरकार के कार्यकाल का बल्कि आज़ाद भारत का ऐसा सबसे बड़ा आंदोलन है जो इतने लंबे समय से जारी है।
किसान आंदोलन में फिर से तेज़ी आएगी। 40 किसान यूनियनों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि मई महीने में वे संसद तक मार्च निकालेंगे। हालाँकि इस बारे में निश्चित तारीख़ की घोषणा बाद में की जाएगी।
कृषि क़ानूनों पर बीजेपी से नाराज़ किसानों के एक समूह ने पंजाब के मुक्तसर ज़िले के मलोट में बीजेपी के अबोहर विधायक अरुण नारंग की कथित तौर पर पिटाई कर दी और उनके कपड़े फाड़ दिए।
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों के लिए एमएसपी को क़ानूनी मान्यता देने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया कि वे किसानों का अपमान नहीं करें।
संयुक्त किसान मोर्चा ने अब बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनाव में मोर्चा खोल दिया है। इसने कहा है कि वह रैलियाँ कर लोगों से अपील करेगा कि लोग बीजेपी को वोट नहीं दें।
दिल्ली ग़ाज़ियाबाद बॉर्डर पर देवराज पिछले 80 दिनों से धरने पर बैठे हैं। वह कहते हैं कि 81वाँ दिन है और उम्मीद है कि सरकार यह क़ानून वापस ले लेगी और हम लोग अपनी खेती-किसानी करने अपने-अपने घरों को चले जाएँगे।
क्या कृषि क़ानून केवल कारपोरेट घरानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हैं? क्या इसका कोई वैचारिक आधार भी हो सकता है? क्या मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीति के पीछे कोई समाजनीति भी है?
राहुल गाँधी ने संसद में सीधा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि इस देश को 'हम दो, हमारे दो' चला रहे हैं। राहुल ने कृषि क़ानूनों को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चौधरी चरण सिंह का हवाला देकर और हाशिए वाले किसानों की दयनीय स्थिति की तरफ़ इशारा कर अपनी सरकार के कृषि सुधार क़ानूनों का बचाव किया है।
किसान आंदोलन ने पश्चिम यूपी में बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया है। यहीं से बनी थी योगी की सरकार। आशुतोष के साथ चर्चा में विनोद अग्निहोत्री, यूसुफ़ अंसारी, अनिल शुक्ला, हरि जोशी और आलोक जोशी।
प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा में जो बातें कही उससे क्या समझा जाये? क्या वो किसानों के आंदोलन के प्रति गंभीर हैं? आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, विजय त्रिवेदी, सतीश के सिंह, तेजेंद्र सिंह विर्क।
किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?