प्रधानमंत्री मोदी अगले हफ़्ते मुंबई के दौरे पर क्यों आ रहे हैं? क्या वह सिर्फ़ परियोजनाओं का उद्घाटन करने आ रहे हैं या फिर बीएमसी चुनाव के मद्देनज़र? जानिए, एकनाथ शिंदे की क्या है तैयारी।
सवाल यह है कि बीजेपी और संघ के आलोचक जोगेंद्र कवाडे का एकनाथ शिंदे गुट के साथ गठबंधन कितने दिन चल पाएगा क्योंकि महाराष्ट्र की बीजेपी-एकनाथ शिंदे सरकार में बीजेपी बड़े दल के रूप में है हालांकि उसने मुख्यमंत्री की कुर्सी एकनाथ शिंदे को सौंपी है।
महाराष्ट्र में शिवसेना शिंदे गुट के विधायक बीजेपी में जा सकते हैं। यह बात संजय राउत ने कही। उन्होंने इसकी वजह भी बताई है। दूसरी तरफ शिंदे गुट के एक विधायक दो दिन पहले ऐसा ही कुछ बोल रहे थे। विधानसभा सत्र में भी मंत्रियों और विधायकों में तनातनी दिखी। दिलचस्प होता जा रहा है महाराष्ट्र का घटनाक्रमः
एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के विधायकों के बीच जंग जारी है और अब शिंदे गुट के विधायकों का कहना है कि असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की शिवसेना है और इसलिए ही हमने अपनी पार्टी के दफ्तर में ताला लगाया है।
महाराष्ट्र में शिंदे सरकार के कामकाज पर तरह तरह के सवाल। मुख्यमंत्री शिंदे सरकार चला रहे हैं या उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस? आज की जनादेश चर्चा इसी विषय पर।
महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी ने गृहमंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी। कहा मार्गदर्शन कीजिए। उधर शिंदे सरकार पर निर्भया फंड की हेराफेरी का आरोप। क्या महाराष्ट्र में बीजेपी और शिंदे गुट के रिश्ते खटाई में हैं?
शिवाजी महाराज पर विवादित बयान को लेकर शिंदे खेमे के ही विधायक ने भी अब महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के ख़िलाफ़ बोला है। जानिए उन्होंने क्या कहा।
इस साल जून में शिवसेना में बड़ी बगावत हुई थी और शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। उसके बाद से कई विधायक, सांसद और शिवसैनिक एकनाथ शिंदे गुट के साथ आ गए हैं।
महाराष्ट्र के प्रोजेक्ट्स गुजरात ले जाने का मुद्दा क्या प्रदेश में नया राजनीतिक ध्रुवीकरण खड़ा करेगा ? क्या यह मुद्दा कोई सियासी रंग दिखा पायेगा ? या यूं कह लें कि क्या यह मुद्दा भारतीय जनता पार्टी द्वारा जोड़ तोड़ कर बनाये गए नए सत्ता समीकरण के लिए नयी चुनौती साबित होगा ? संजय राय ने इन्हीं सवालों को उठाया है।
महाराष्ट्र में अब सरकार को किसी मामले की जाँच के लिए राज्य सरकार से पहले सहमति लेने की ज़रूरत नहीं होगी। आख़िर ऐसा क्यों? क्या एकनाथ शिंदे सरकार के फ़ैसले से उद्धव ठाकरे खेमे सहित विपक्ष के लिए मुश्किल होगी?
क्या चुनाव आयोग ने शिंदे गुट की मदद की? क्या उसने उसे ये बता दिया था कि उद्धव ठाकरे ने कौन से चुनाव चिन्ह माँगे हैं? क्या चुनाव आयोग से मिली जानकारी के आधार पर ही शिंदे ने उद्धव से मिलते-जुलते चुनाव चिन्ह माँगे? क्या पार्टी के नाम के बारे में भी चुनाव आयोग ने इसी तरह पक्षपात किया?
शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न पर चुनाव आयोग की रोक के बाद पार्टी के मुखपत्र सामना ने एक संपादकीय छापा है। जानिए इसने इसमें शिंदे को लेकर क्या-क्या लिखा। पढ़िए, सामना का पूरा संपादकीय-