देश की जीडीपी में तेज़ गिरावट आई तो उसका आम इंसान की ज़िंदगी पर क्या फ़र्क पड़ेगा? भारत को फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर यानी पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने का क्या होगा और इस हालत से उबरने का रास्ता क्या है?
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने कोरोना महामारी को ही ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’ कहा है। ऐसा कहकर बीते छह सालों में लगातार गिरती अर्थव्यवस्था के वाजिब कारणों को पहचाने से भी बचने की कोशिश कर रही है केंद्र सरकार।
सिर्फ़ 40 दिन में 69 लाख लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन दिया। बेरोज़गारी के भयावह संकट के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने 11 जुलाई को ही इस पोर्टल को लॉन्च किया है।
लॉकडाउन की घोषणा या उससे पहले नौकरियों के बारे में जिस तरह की आशंकाएँ जताई जा रही थीं, ठीक वैसा ही असर हुआ है। लॉकडाउन के दौरान अप्रैल से जुलाई तक 1 करोड़ 89 लाख वेतन भोगी लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं।
कोरोना काल का चौथा लॉकडाउन खत्म होने को है। लेकिन आसार दिखने लगे हैं। कोरोना के साथ जीना सीखना होगा। इकोनॉमी, जीडीपी, रोज़गार और जीवन पर क्या असर पड़ा और कितना वक्त लगेगा इससे उबरने में? आलोक अड्डा में मनिपाल ग्लोबल के चेयरमैन मोहनदास पई से ख़ास चर्चा।
क्या सरकार को इतनी मामूली सी बात भी नहीं पता कि पेट्रोल-डीज़ल के दाम आसमान छूने से सबसे ज़्यादा असर मध्य वर्ग पर ही पड़ेगा। मध्यम वर्ग पर ही आर्थिक मन्दी और बेरोज़गारी की सबसे तगड़ी मार पड़ी है।
लॉकडाउन के कारण जब अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट है, ऐसे समय में प्रधानमंत्री का कहना है कि हमारी अर्थव्यवस्था अच्छी है, उनके इस बयान का क्या आधार है, कुछ पता नहीं।
कोरोना से पैदा हुआ आर्थिक संकट मानव इतिहास का सबसे बड़ा संकट बनता जा रहा है। आलोक अड्डा में वरिष्ठ पत्रकार शिवकांत शर्मा का कहना है कि सिर्फ अमेरिका का हाल देख लें तो यह 1930 की महामंदी से भी बड़ी महामंदी बनती दिख रही है।
भारत की अर्थव्यवस्था एक तो पहले से ही बुरे दौर में थी और अब कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने स्थिति और ख़राब कर दी है। मार्च महीने में निर्यात में 34.57 फ़ीसदी की कमी आई है।
अगर कृषि क्षेत्र में फ़सलों की समस्याओं का तत्काल समाधान न किया जाए, तैयार फ़सलों की कटाई न की जाए और उन्हें मंडी तक न पहुँचाया जाए तो फ़सलें ख़राब हो जाएँगी।
कोरोना का डर, लॉकडाउन की दिक़्क़त और अब भविष्य की आशंका। कितनी बड़ी है यह समस्या, किसपर कितना असर पड़ेगा? और इसके आगे का रास्ता क्या हो? आलोक जोशी ने बात की दिग्गज आर्थिक पत्रकार और बिज़नेस स्टैंडर्ड के संपादकीय निदेशक ए के भट्टाचार्य से।