भारत की अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में अफरा-तफरी है। बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है। विनिर्माण क्षेत्र की हालत ख़स्ता है। क्या ऐसी अर्थव्यवस्था को बचा पाएँगी निर्मला सीतारमण? देखिए आशुतोष की बात में वरिष्ठ पत्रकार शैलेश से चर्चा।
अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने के लिए निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कई घोषणाएँ कीं। उन्होंने कहा कि सुधार लगातार चलते रहने वाली प्रक्रिया है और व्यापार करने के अनुकूल माहौल बनाने का प्रयास अभी भी जारी है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने एक कार्यक्रम में कहा था कि देश में 70 साल में अब तक नकदी का ऐसा संकट नहीं देखा गया है। सरकार के लिए यह अप्रत्याशित समस्या है।
चुनाव मैदान से लेकर टीवी चैनलों पर यह बहस चल रही है कि प्रधानमंत्री नीच हैं या नीची जाति के हैं, पर क़ायदे से यह बहस होनी चाहिए थी कि क्या देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका है या आने वाला है।
बेरोज़गारी के आँकड़े के बाद अब आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार के लिए एक और बुरी ख़बर है। तेल-साबुन और खाने-पीने जैसे उपभोक्ता सामान की माँग घट गयी है। एफ़एमसीजी सेक्टर की वृद्धि दर 11-12 प्रतिशत रह जाने की संभावना है।