डूबती अर्थव्यवस्था का एक और संकेत। अब शेयर बाज़ार औंधे मुँह गिरा है। इस गिरावट से 2 लाख 55 हज़ार करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी यह मानने को तैयार क्यों नहीं हैं कि अर्थव्यवस्था ख़राब हालत में है? देखिए आशुतोष की बात में क्यों है ऐसी स्थिति।
ख़राब अर्थव्यवस्था के लिए मनमोहन सिंह ने क्यों कहा कि यह ग़लत नीतियों से संकट आा है? उन्होंने कहा कि सरकार को राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई करना छोड़कर अर्थव्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए? क्या इससे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी? देखिए शैलेश की रिपोर्ट में क्या पूरा मामला।
ख़राब अर्थव्यवस्था के बीच ऑटो उद्योग की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। लगातार दसवें महीने वाहनों की बिक्री में गिरावट रही है। पिछले एक साल में इसमें 30.9 फ़ीसदी की गिरावट आई है।
जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर का गिरना जारी है और आज मिले आँकड़ों के मुताबिक यह 5 प्रतिशत पर पहुँच गया है। इसे रोकने के लिए क्या कर रही है मोदी सरकार? सत्य हिन्दी पर आशुतोष की बात कार्यक्र मे देखें पत्रकार आशुतोष का विश्लेषण।
रोज़गार के कम होते अवसर और मंदी की मार की वजह से इस साल महाराष्ट्र के इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में 70% तक सीटें खाली हैं। एक दौर हुआ करता था जब इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश को लेकर मारामारी रहती थी।
भारत की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर जून में गिरकर पाँच फ़ीसदी पर पहुँच गई है। यह छह साल में सबसे निचला स्तर है। सरकार ने शुक्रवार को यह आँकड़ा जारी किया।
गुजरात के हीरा उद्योग में बीते दो साल से मंदी छाई हुई है। नोटबंदी के बाद शुरु हुआ संकट जीएसटी लागू होने के बाद और गहरा हो गया, 60 हज़ार लोगों की नौकरी चली गई है।
सरकार ने रिजर्व बैंक से पैसे तो ले लिए लेकिन अब वह उसके राजनीतिक नुक़सान से बचने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है। यदि ऐसा नहीं है तो एफ़डीआई में छूट, 75 मेडिकल कॉलेज खोलने जैसी घोषणाएँ क्यों?
अभी तक सरकार ने फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का राग अलापना छोड़ा नहीं है लेकिन जिस रफ़्तार से आरबीआई से पैसे लेने सहित आर्थिक फ़ैसले हो रहे हैं उनसे साफ़ लग रहा है कि सरकार मंदी के डर से परेशान है।
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में जो घोषणाएँ कीं, उसके बाद यह उम्मीद करनी चाहिए कि जल्दी ही कुछ और अच्छी घोषणाएँ होंगी क्योंकि मंदी का भूत इन 33 हल्के मंत्रों से नहीं भाग सकता।
मंदी के कारणों को समझने और कार्रवाई करने के बजाय कुतर्कों से जीतने की कोशिश की गई और अब वही कार्रवाई की जा रही है जो चुनाव से पहले कर दी जानी चाहिए थी।