प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल को काफी पसंद किया गया था जब उन्होंने विकलांग के लिए दिव्यांग शब्द दिया था। लेकिन ज़मीनी हक़ीकत क्या है, शब्द बदलने से उनकी ज़िन्दगी में कोई राहत नहीं आई। शुभम देशमुख ने बहुत बारीकी से इस व्यथा को विस्तार से पेश किया है, पढ़ियेः