देश की राजधानी दिल्ली में अगर पत्रकारों को मारा-पीटा जाए और महिला पत्रकार के साथ सार्वजनिक तौर पर यौन दुर्व्यवहार किया जाए तो इसके क्या मायने निकाले जाएं? क्या ये आने वाले भयावह समय के संकेत नहीं हैं? पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
क़रीब ढाई सौ जाने माने नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवियों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से दिल्ली दंगों की निष्पक्ष जाँच करवाने की माँग की है। लेकिन केंद्र सरकार के रुख़ को देखते हुए क्या यह मुमकिन हो पाएगी? मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की वरिष्ठ नेता बृंदा कारत से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने बातचीत की। पेश हैं उसके अंश।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फ़रवरी में हुए दंगों में दिल्ली सरकार की तरफ़ से पैरवी कौन करे, इस सवाल पर अब दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच खुलकर टकराव हो रहा है।
हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा है कि वह स्पेशल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (सीपी) के उस ऑर्डर की कॉपी जमा कराए जिसे दंगा पीड़ित दो परिवारों के सदस्यों की ओर से अदालत में चुनौती दी गई है।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की एक कमेटी ने दिल्ली के दंगों की जाँच के बाद कहा है कि दंगों और दंगों के बाद पुलिस की भूमिका पक्षपातपूर्ण रही है। उसके ये निष्कर्ष दिल्ली पुलिस की जाँच के ठीक उलट हैं। क्या है सच, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार
दिल्ली हाईकोर्ट में पुलिस का एफिडेविट पुलिस की पोल खोलता है। और इस प्रचार को गलत बताता है कि फ़साद हिंदू विरोधी था। मुस्लिमों को कई गुना ज़्यादा नुक़सान हुआ।
स्पेशल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस ने जाँच टीमों से कहा है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कुछ हिंदू युवाओं की गिरफ्तारी से हिंदू समुदाय में कुछ हद तक ग़ुस्सा है, गिरफ़्तारी के समय 'उचित ध्यान रखें'।
दिल्ली दंगे में आरोपी बनाए गए आप के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन को दिल्ली के एक कोर्ट ने यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि उन्होंने दंगाइयों को 'मानव हथियार' जैसा इस्तेमाल किया।