जूलियो रिबेरो बेदाग़ प्रोफेशनल छवि के लिए मशहूर पुलिस अफ़सर रहे हैं। दिल्ली पुलिस कमिश्नर को रिबेरो की लिखी एक चिट्ठी सामने आई है, जिसमें उन्होंने दिल्ली दंगों की जाँच पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि ‘सच्चे देशभक्तों' को घसीटा जा रहा है।
एक हज़ार से ज़्यादा बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और कार्यकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस को चिट्ठी लिख कर आरोप लगाया है कि उसने लोगों पर दबाव डाल कर मनमाना, बेबुनियाद व मगढंत कबूलनामा लिया है, जिससे दंगों में लोगों को फँसाने की कोशिश की गई है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिल्ली दंगों में पुलिस पर पक्षपात बरतने के आरोप तो लगाए ही हैं, केंद्र सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। ज़ाहिर है एमनेस्टी की रिपोर्ट का भारत के हितों और मोदी सरकार की छवि पर व्यापक असर पड़ने वाला है। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
दिल्ली दंगे पर एक किताब के लॉन्च इवेंट पर विवाद के बाद अब इसके प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया ने किताब के प्रकाशन से हाथ खींच लिए हैं। बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के नाम पर विवाद हुआ था।
देश की राजधानी दिल्ली में अगर पत्रकारों को मारा-पीटा जाए और महिला पत्रकार के साथ सार्वजनिक तौर पर यौन दुर्व्यवहार किया जाए तो इसके क्या मायने निकाले जाएं? क्या ये आने वाले भयावह समय के संकेत नहीं हैं? पेश है वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
क़रीब ढाई सौ जाने माने नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवियों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से दिल्ली दंगों की निष्पक्ष जाँच करवाने की माँग की है। लेकिन केंद्र सरकार के रुख़ को देखते हुए क्या यह मुमकिन हो पाएगी? मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की वरिष्ठ नेता बृंदा कारत से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने बातचीत की। पेश हैं उसके अंश।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फ़रवरी में हुए दंगों में दिल्ली सरकार की तरफ़ से पैरवी कौन करे, इस सवाल पर अब दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच खुलकर टकराव हो रहा है।
हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा है कि वह स्पेशल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (सीपी) के उस ऑर्डर की कॉपी जमा कराए जिसे दंगा पीड़ित दो परिवारों के सदस्यों की ओर से अदालत में चुनौती दी गई है।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की एक कमेटी ने दिल्ली के दंगों की जाँच के बाद कहा है कि दंगों और दंगों के बाद पुलिस की भूमिका पक्षपातपूर्ण रही है। उसके ये निष्कर्ष दिल्ली पुलिस की जाँच के ठीक उलट हैं। क्या है सच, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार