दिल्ली दंगों के मुसलमान अभियुक्तों की पैरवी कर रहे महमूद प्राचा के दफ़्तर पर छापा मारने की पुलिस की कार्रवाई किस तरह दोषपूर्ण, एकतरफा और भेदभाव पर आधारित थी, यह अब खुल कर सामने आ रहा है।
दिल्ली दंगों में मुस्लमानों के वकील महमूद प्राचा के आफिस पर पुलिस ने 15 घंटे छापा मारा । आशुतोष से उन्होने कहा कि दंगों के तार बहुत ऊपर तक है । पुलिस उन्हीं सबूतों को लेने ज़बरन आयी थी ।
क्या मशहूर वकील महमूद प्राचा को दिल्ली पुलिस इसलिए निशाना बना रही है कि वे दिल्ली दंगों में मुसलमानों की पैरवी कर रहे हैं? क्या वे गृह मंत्रालय के निशाने पर इसलिए हैं कि उन्होंने 22 आरएसएस कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ सबूत पेश कर उन्हें गिरफ़्तार करवाया था?
दिल्ली दंगों की जाँच कर रही पुलिस जिस तरह छात्रों और एक्टिविस्ट के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है, उससे भारतीय राज्य उत्पीड़न की अंधेरी रात में प्रवेश कर रहा है।
इस साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर और जाफ़राबाद समेत कुछ इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
दिल्ली पुलिस फरवरी में राजधानी में हुए दंगों में लोगों को फँसाना चाहती है, यह इससे साफ है कि इसने दंगों की साजिश के पीछे जो कहानी गढ़ी, उसका बड़ा झूठ पकड़ा गया। इस झूठ के पकड़े जाने के बाद दिल्ल पुलिस ने एक दूसरी चार्जशीट दाख़िल की।
क्या दिल्ली पुलिस इस साल फरवरी में राजधानी में हुए दंगों के असली दोषियों तक पहुँचना ही नहीं चाहती है? क्या वह दंगाइयों को बचाने के लिए दंगे की असली वजह की तलाश करने के बजाय इधर-उधर की बात कर रही है?
दिल्ली दंगे के छह महीने बाद भी सभी पीड़ितों को राहत नहीं मिल पाई है। दिल्ली सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि प्रभावित परिवारों को राहत मिलने में देरी हुई, हर्जाना कम मिला है, हर्जाने की माँग वाले कई आवेदनों को ग़लत तरीक़े से खारिज़ किए गए हैं।
दिल्ली दंगों की जाँच पर जूलियो रिबेरो का करारा जवाब! मुंबई के सुपरकॉप ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को दोबारा चिट्ठी लिखी। गोडसे के दौर में गांधी के साथ खड़े पूर्व पुलिस अफ़सर!
दिल्ली दंगों में पुलिस ने पाँच एफ़आईआर ऐसी दायर की हैं जो एक-दूसरे की नकल लगती हैं। दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर यह मुद्दा उठाने का फ़ैसला किया है।
इस साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर और जाफ़राबाद समेत कुछ इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
क्या दिल्ली पुलिस इस साल फरवरी में हुए सांप्रदायिक दंगों के बहाने समान नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाने वालों को फंसाना चाहती है? क्या उसका मक़सद दंगों की जाँच और उसके दोषियों को सज़ा दिलाना नहीं है?
उमर खालिद की रिहाई की माँग को लेकर सैयदा हमीद, प्रशांत भूषण, कन्हैया कुमार जैसे एक्टिविस्टों ने बयान जारी किया है। उन्होंने दिल्ली हिंसा में दिल्ली पुलिस की जाँच पर सवाल उठाए हैं।
दिल्ली के दंगों में स्पेशल सेल ने उमर ख़ालिद को कल रात गिरफ़्तार कर लिया है। उन पर यूएपीए लगाया गया है। इस गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ देश-विदेश में व्यापक प्रतिक्रिया हुईं हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक हाल ही में रिटायर हुए जस्टिस लोकुर समेत 66 बुद्धिजीवियों ने इसके ख़िलाफ़ बयान दिया है, शीतल पी सिंह का विश्लेषण।