राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर रविवार को समान नागरिक संहिता के समर्थन में एक रैली हुई, लेकिन उसमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक नारे लगाए गए। दिल्ली बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता ने इसका आयोजन किया था।
दिल्ली के सत्र न्यायालय ने एक बेहद अहम फ़ैसले में दिल्ली पुलिस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि उसने दिल्ली दंगा के दौरान गोली चलाने के अभियुक्तों के बचाव में साक्ष्य गढ़ा था।
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामले में मंगलवार को जब देवांगना कालिता, नताशा नरवाल और आसिफ़ इक़बाल तन्हा को जमानत दी तो सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस को जमकर फटकार लगाई।
यह 1968 का साल था। अमेरिका तरह-तरह के उथल-पुथल से गुज़र रहा था। लिंडन जॉन्सन राष्ट्रपति थे। उन्होंने देश को वियतनाम युद्ध में झोंक रखा था और उनकी सरकार अपने लोगों से युद्ध का सच छुपा रही थी। नाकाम सरकार अब अमेरिका पर ख़तरे का डर दिखा रही थी और अपने विरोधियों को जेल भेज रही थी।
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दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को पूर्व जेएनयू छात्र उमर खालिद को जमानत दे दी है। उमर को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में आरोपी रूप में जेल में रखा गया था।
पिछले साल फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों की जाँच को लेकर विवादों में घिर चुकी दिल्ली पुलिस की तीखी आलोचना अब अदालत भी कर रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अभियुक्त के कथित कबूलनामे के लीक होने की जाँच रिपोर्ट पर पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि यह 'आधा-अधूरा और बेकार काग़ज़ का टुकड़ा है।'
उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा का एक साल: क्या पीड़ितों को मिला न्याय?कपिल मिश्रा फिर से क्या दोहराना चाहते है? देखिए वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास की दिल्ली दंगे को लेकर ये रिपोर्ट-
दिल्ली दंगे के एक साल हो गए। देश इसे एक बुरे सपने की तरह शायद भूलने की कोशिश में है, लेकिन बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने एक ताज़ा विवादित बयान देकर उन घटनाक्रमों की पीड़ा को फिर से ताज़ा कर दिया!
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे के एक साल बाद जाँच कहाँ पहुँची और क्या दंगा पीड़ितों को न्याय मिला? दंगे में 53 लोगों की जानें गई थीं और गई बेघर हुए थे। भारी नुक़सान पहुँचा था।
बीते साल फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर और जाफ़राबाद समेत कुछ और इलाक़ों में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे, जिसमें 53 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।