सेक्युलर राजनीति ने दलित राजनीति करने वाले नेताओं का बुरा हाल कर दिया है। इस कदर कि उनकी पहचान ही ख़त्म होती जा रही है और दलित नेताओं को जनप्रतिनिधि के तौर पर उनके दलित समाज से ही मान्यता मिलती कम होती जा रही है।
दलितों के इंसानी हुकूक का सबसे बड़ा दस्तावेज़ भारत का संविधान है। उसके साथ हो रही छेड़छाड़ की कोशिशों से हमारे गाँव के दलित चौकन्ने हैं। उनको जाति के शिकंजे में लपेटना नामुमकिन है।