सुपर हिट फ़िल्म ‘हेराफेरी’ की याद मुझे आज 68 दिनों के लॉकडाउन खुलने के बाद हुए अनलॉक के पहले दिन आ रही है। देश भर में कुल मिलाकर हर जगह फ़िल्म ‘हेराफेरी’ जैसा सीन महसूस किया जा सकता है।
श्रमिकों ने सोचा कि सड़कों पर मारे-मारे फिरे तो सचमुच कोरोना से मर जाएँगे। किसी तरह घर पहुँच गए तो शायद ज़िंदा रह जाएँ अन्यथा मरण तो पक्का है। दोनों सूरतों में अगर मरना ही है तो क्यों न अपनी माटी में जाकर मिट्टी में मिल जाएँ।
सरकार के इस दावे पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं कि उसने रोकथाम के उपाय कर 29 लाख लोगों को कोरोना संक्रमित होने से बचा लिया और 78 हज़ार लोगों को मौत के मुँह में जाने से रोक लिया।
स्वास्थ्य और महामारी से जुड़े विशेषज्ञों ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम के सरकार के तौर-तरीकों की तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि इस स्थिति में यह संक्रमण नहीं रोका जा सकता है।
लॉकडाउन 4.0 ख़त्म होने की समय सीमा 31 मई नज़दीक आ गई है। क्या नरेंद्र मोदी सरकार इसे एक बार और बढ़ाएगी या इसे हटा लेगी? पीएमओ इसी सवाल पर मंथन कर रहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि केंद्र सरकार ज़रूरतमंदों को राहत दे। हर परिवार को 6 महीने के लिए 7500 रुपये प्रतिमाह कैश भुगतान करे और उसमें से 10 हज़ार रुपये फौरन दे।
महानगरों से निकल गाँव पहुँचे लाखों मज़दूरों ने साबित कर दिया है कि भारत में कोरोना का महासंक्रमण नहीं हो सकता। तो अब लॉकडाउन को पूरी तरह कब और कैसे ख़त्म करेगी सरकार? देखिए शैलेश की रिपोर्ट।