केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों, दिहाड़ी मज़दूरों और शहरी तथा ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले ग़रीबों के लिए एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ के पैकेज की घोषणा की है।
कोरोना वायरस के फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया तो हज़ारों लोग पैदल ही घर की ओर निकल गए। आख़िर ये चुपचाप निकल क्यों गए? इन्होंने आवाज़ क्यों नहीं उठाई?
क्या आप कोरोना से सुरक्षित हैं? क्या प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों से आप इस वायरस से सुरक्षित होने के प्रति आश्वस्त हैं? सरकार के पास कोई योजना है जिससे आपका विश्वास पक्का होता हो कि अब कोरोना ख़त्म हो जाएगा?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में कोरोना वायरस से बचाव की कार्रवाई काफ़ी देर से शुरू हुई। क्रोनोलॉजी से आप जानते हैं कि चीन में इसका पता 31 दिसंबर को चला था और भारत में पहला मामला 30 जनवरी को मिला था।
कोरोना वायरस की सबसे ज़्यादा मार रोज कमाने-खाने वाले वर्ग पर पड़ी है। शहरों से गांवों की ओर पैदल ही लौट रहा यह वर्ग रास्ते में पुलिस की ज़्यादती का भी शिकार हो रहा है।
हैदराबाद में सैकड़ों लोग पुलिस स्टेशनों के बाहर उस पास के लिए लाइनों में लग गए जिससे वे अपने घर जा सकें। लाइनें ऐसी लगी हैं कि 'सोशल डिस्टेंसिंग' के नियम का पालन नहीं हो पा रही है।
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से दुनिया में तीन अरब लोग अपने-अपने घरों में क़ैद हैं, पौने पाँच लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और 20 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
कोरोना वायरस से बचें या भूखे मरने की नौबत आने से? लॉकडाउन के बाद यही सवाल शहरों में फँसे हज़ारों मज़दूरों के दिमाग़ में है। यही उलझन उन्हें जैसे-तैसे घर भागने पर मजबूर कर रही है।
सरकार कह रही है कि संपूर्ण लॉकडाउन के दौरान भी आपको सब्जी, दूध, दवा और अन्य ज़रूरी चीजों की कोई कमी नहीं होने दी जायेगी। लेकिन लोग मानने के लिये तैयार नहीं हैं।