अगर कृषि क्षेत्र में फ़सलों की समस्याओं का तत्काल समाधान न किया जाए, तैयार फ़सलों की कटाई न की जाए और उन्हें मंडी तक न पहुँचाया जाए तो फ़सलें ख़राब हो जाएँगी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कोरोना महामारी के कारण भारत के 40 करोड़ लोगों के ग़रीबी रेखा के नीचे जाने का ख़तरा बढ़ गया है और लॉकडाउन से मजूदर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
पिछले महीने मोदी ने देश से 21 दिन माँगे थे कोरोना को हराने के लिये। पर क्या 21 दिन में वो कोरोना को हरा पाये? क्यों नहीं हरा पाये? क्यों कोरोना को रोकने के लिये लॉकडाउन को बढ़ाना पड़ेगा? देखिए आशुतोष की बात।
कोरोना का डर, लॉकडाउन की दिक़्क़त और अब भविष्य की आशंका। कितनी बड़ी है यह समस्या, किसपर कितना असर पड़ेगा? और इसके आगे का रास्ता क्या हो? आलोक जोशी ने बात की दिग्गज आर्थिक पत्रकार और बिज़नेस स्टैंडर्ड के संपादकीय निदेशक ए के भट्टाचार्य से।
लम्बे समय तक चल सकने वाले लॉकडाउन के दौरान हमें इस एक सम्भावित ख़तरे के प्रति भी सावधान हो जाना चाहिए कि अपने शरीरों को ज़िंदा रखने की चिंता में ही इतने नहीं खप जाएँ कि हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक आत्माएँ और आस्थाएँ ही मर जाएँ।
लॉकडाउन यानी घरबंदी के दो हफ़्ते बीत चुके हैं और एक हफ़्ता बाक़ी है। लेकिन सवाल उठने लगे हैं कि क्या 14 अप्रैल के बाद यानी तय समय पर सरकार को यह लॉकडाउन ख़त्म कर देना चाहिए या इसे और बढ़ाना चाहिए। आलोक अड्डा में आज की चर्चा वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी और राजेंद्र तिवारी के साथ।
हालाँकि मीडिया ने लॉकडाउन फ़ेल करने का हर गुनाह तब्लीग़ी जमात पर मढ़ दिया है पर असल गुनहगार देश में लॉकडाउन तय करने का तौर तरीक़ा है। मोदीजी जब-जब बड़े ऐलान करते हैं तब तब भीड़ क़ाबू से बाहर हो जाती है और सारे बंधन टूट जाते हैं । इस बार भी ऐसा ही क्यों हुआ? सवाल उठा रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह।