मीडिया में उथल पुथल मची हुई है । तमाम नौकरियाँ चली गई हैं और तमाम उसी रास्ते पर हैं । कई जगह वेतन कटौती हो चुकी है । कोरोना प्रलय बन कर आया है । रेवेन्यू के नदारद होते ही कुछ राष्ट्रवादी पत्रकार रातोंरात धर्मनिरपेक्ष हो गये तो कई मध्यमार्गी राष्ट्रवादी । तमाम मज़दूर की भाषा बोलते मिले और तमाम चीखते स्वर गूँगे हो गये । अमर उजाला के संपादक मंडल के नक्षत्र शरद गुप्ता से इस पर सवाल पूछ रहे हैं शीतल पी सिंह
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प मार्च से ही लॉकडाउन हटाने का हट कर रहे थे, मगर मेडिकल एक्सपर्ट ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। लेकिन अब वे किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं और लॉकडाउन हटाने का फ़ैसला थोपने पर आमादा हैं। लगता है अपने चुनाव का डर उन पर इतना हावी हो गंया है कि वे अब अमरीकियों की जानों की चिंता नहीं कर रहे।
क्या लॉकडाउन से हमारी केंद्र व राज्य सरकारों ने वह हासिल कर लिया जिसके दावे किए गए थे? या लॉकडाउन के बाद एक और लॉकडाउन करके ही कोरोना वायरस पर विजय पाने की बात केंद्र व राज्य सरकारों ने सोच रखी है?
लॉकडाउन पार्ट 2 के दौरान 20 अप्रैल से कुछ जगहों पर छूट मिलने की बात केंद्र सरकार ने कही है। लेकिन देश की राजधानी के लोगों को यह छूट नसीब होना मुश्किल है।
भारत की अर्थव्यवस्था एक तो पहले से ही बुरे दौर में थी और अब कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने स्थिति और ख़राब कर दी है। मार्च महीने में निर्यात में 34.57 फ़ीसदी की कमी आई है।