क्या आनाकानी करने वाले और सुस्त व चापलूस कोरोना विशेषज्ञों की वजह से केंद्र सरकार कोरोना से निपटने में धीमे चल रहा है और क्या इससे नरेंद्र मोदी को राजनीतिक नुक़सान होगा?
भारत ने एक दिन पहले ही यानी गुरुवार को कोरोना टीके की एक अरब खुराक लगाने का आँकड़ा पार किया है। भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा ऐसा देश है जिसने 100 करोड़ खुराक लगायी है।
कोरोना टीकाकरण में 100 करोड़ खुराक लगाना बड़ी उपलब्धि तो है, लेकिन क्या इस उपलब्धि के आगे चुनौतियों पर नज़र है? क्या इसकी चिंता है कि टीकाकरण कम क्यों पड़ रहा है?
कोरोना वायरस ने भारत के साथ ही दुनिया भर में तबाही मचाई है। ऐसे में सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि लोगों को जल्द से जल्द दोनों डोज़ लग जाएं, जिससे वे संक्रमित होने से बच सकें।
प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर बिहार में रिकॉर्ड 33 लाख से ज़्यादा टीके लग गए। इस दिन इतना ज़्यादा किसी राज्य में नहीं लगा। आख़िर राज्य में यह सब कैसे संभव हो पाया?
प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन यानी 17 सितंबर को रिकॉर्ड 2.5 करोड़ टीकाकरण में मध्य प्रदेश में क्या गड़बड़ी हुई थी? 4 महीने पहले मृत व्यक्ति को टीका लगा हुआ कैसे बता दिया गया?
जोखिम वाले समूहों से ही क़रीब 1.65 करोड़ लोगों ने समय पर दूसरी खुराक ली ही नहीं। समय पर से मतलब है लोगों को जितने दिनों के अंतराल में दूसरी वैक्सीन लगवानी थी उसे वे नहीं लगवा पाए। ऐसा तब है जब तीसरी लहर आने की आशंका है।
फिच समूह की इंडिया रेटिंग्स ने टीकाकरण की रफ़्तार कम होने की वजह से भारत की जीडीपी अनुमान घटा दिया है। इसने कहा है कि जीडीपी वृद्धि दर 2021-22 में 9.6 फ़ीसदी नहीं, बल्कि अब 9.4 फ़ीसदी ही रहने की संभावना है।
हिमाचल प्रदेश में जहाँ 73.3 फ़ीसदी से भी ज़्यादा वैक्सीन के योग्य आबादी को कम से कम एक टीका लगाया गया है जबकि उत्तर प्रदेश 29.5 फ़ीसदी आबादी को ही टीके लगाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
कोरोना टीकाकरण धीमा पड़ गया है। एक दिन पहले ही मंगलवार को दिल्ली सरकार ने कहा था कि कोविशील्ड के टीके ख़त्म होने के कारण उसे टीकाकरण केंद्र बंद करना पड़ा है। टीकाकरण के मामले में भी उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे राज्य हैं जो सबसे पिछड़े हैं।