रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान राष्ट्रीय दलों के कुल चंदे में 187.026 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी हुई, जो 2020-21 वित्त वर्ष से 31.50 प्रतिशत अधिक है।
बीएसपी प्रमुख मायावती ने गठबंधन को लेकर अपनी रणनीति स्पष्ट की है। उन्होंने रविवार को अपने जन्मदिन के मौके पर कहा कि बीएसपी किसी भी दल से गठबंधन नहीं करेगी और अकेले चुनाव लड़ेगी, चाहे वो विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव हो। मायावती ने ऐसी रणनीति क्यों अपनाई, जानिएः
बीएसपी ने इस साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे 10 राज्यों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए रणनीति की घोषणा की है। जानिए मायावती ने क्या कहा है।
यूपी की राजनीति में बदलते घटनाक्रमों के बीच बीएसपी प्रमुख मायावती ने आज मंगलवार 20 सितंबर को योगी सरकार पर फिर हमला बोला। योगी सरकार पर लगातार हमले का आज दूसरा दिन है। अभी तक मायावती दबी जुबान से ही बीजेपी सरकार की आलोचना की है।
बीजेपी को मनुवादी पार्टी कहकर आरोप लगाती रहीं मायावती ने आख़िर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का समर्थन क्यों किया? आख़िर वह विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में क्यों नहीं हैं?
अगर राजभर बीएसपी के साथ जाते हैं तो मायावती का कोर वोट बैंक माने जाने वाले दलित और सुभासपा के आधार वाली अति पिछड़ी जातियों और मुसलमानों को मिलाकर उत्तर प्रदेश और विशेषकर पूर्वांचल के भीतर एक नया सियासी समीकरण तैयार हो सकता है।
जिस बीएसपी को बीजेपी की टीम बी होने का आरोप लगता रहा है क्या उसी के वोट ट्रांसफर होने की वजह से बीजेपी यूपी में सरकार बना पाई? जानिए बीजेपी की रिपोर्ट में क्या है दावा।
दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती ने बीएसपी को फिर से खड़ा करने की कोशिश तेज कर दी है। उन्होंने आज लखनऊ में पार्टी की समीक्षा बैठक बुलाई थी। इसमें कई अहम फैसले लिए गए।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीएसपी की करारी हार के बाद पार्टी की मुखिया मायावती की लगातार आलोचना हो रही है। बीजेपी की जीत के लिए भी उन्हें जिम्मेदार बताया जा रहा है।
यूपी चुनाव में करारी हार से परेशान बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने मीडिया को निशाने पर लिया है। उन्होंने अपने प्रवक्ताओं के टीवी डिबेट में जाने पर रोक लगा दी है।
एक वक्त में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मजबूत सियासी हैसियत रखने वाली बीएसपी क्या फिर से वैसी ही मजबूत हो पाएगी, यह सवाल मायावती और कांशीराम के समर्थकों के मन में लगातार उठता रहा है।