प्रसिद्ध नारीवादी निवेदिता मेनन की किताब 'सीइंग लाइक अ फेमिनिस्ट' का हिंदी अनुवाद 'नारीवादी निगाह से' नाम से हाल ही में प्रकाशित हुआ है। किताब बड़ी सरलता से हमे मौजूदा व्यवस्था, जेंडर अवधारणाओं और व्यवहारिक प्रयोगों के विरोधाभासों से रूबरू करती हैं।
एक तबका गांधी की हत्या को सही ठहराने की भौंडी और वीभत्स कोशिश कर रहा है। तब एक बार फिर गांधी की हत्या पर नये सिरे से पड़ताल की ज़रूरत थी। अब यह नई कोशिश एक किताब- ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ की शक्ल में सामने आयी है।
डॉ. मुकेश कुमार की पुस्तक ‘मीडिया का मायाजाल’ मीडिया विषयक चार दर्जन लेखों का संग्रह है जिसमें बीते चार-पाँच साल में मीडिया के स्वभाव में आए परिवर्तन चिंता के साथ व्यक्त हुए हैं।
22 मई, 1987 को हुआ हाशिमपुरा कांड मुसलमानों की सामूहिक रूप से की गई स्वतंत्र भारत के इतिहास में हिरासती हत्याओं का सबसे बड़ा मामला था। इस पर विभूति नारायण राय ने 'हाशिमपुरा 22 मई' किताब लिखी है। पेश है इसकी समीक्षा।
शिरीष कुमार मौर्य का नया कविता संग्रह रितुरैण इस विश्वास को और भी पुख़्ता करता है कि एक कवि के रूप में उनकी यात्रा नए मार्गों का अन्वेषण करते हुए निरंतर आगे बढ़ रही है।
वरिष्ठ कवयित्री अनामिका का कविता संग्रह पानी को सब याद था गाँव-देहात से लेकर शहरों तक की औरतों का अद्भुत कविता-कोलाज़ है। ये एक ऐसा अलबम है जिसमें स्त्रियों की अनगिनत छवियाँ संजोई गई हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित लेखक हेमंत शर्मा की एक और किताब छप कर बाज़ार में आ गई है। हमेशा की तरह उनकी किताब के शीर्षक ‘एकदा भारतवर्षे’ से उसके कथ्य के पांडित्यपूर्ण होने की झलक मिलती है। इस पुस्तक की सामग्री उनकी पिछली किताबों से एकदम भिन्न शैली की है।
वाह उस्ताद! प्रवीण कुमार झा की किताब हिंदुस्तानी संगीत घरानों के क़िस्से। कुली लाइंस के लेखक और नॉर्वे में डॉक्टर प्रवीण झा की किताब पर चर्चा। लेखक के साथ मशहूर दास्तानगो और किस्सा किस्सा लखनउवा के लेखक हिमांशु बाजपेयी भी चर्चा में हैं।
आज भी जब कभी मुग़ल काल के बादशाहों का ज़िक्र होता है तो औरंगज़ेब और दारा शिकोह बरबस ही आमने-सामने खड़े होते दिखते हैं। यह एक ऐसी कहानी है जिसमें भाई भाई का न हुआ, बेटा बाप का न हुआ और बाप बेटों का नहीं हुआ।