2014 में बीजेपी ने शोर-शराबे के बीच बहुमत सिद्ध करने की घोषणा करा ली थी। तो क्या शिवसेना इस बार बीजेपी की ऐसी ही किसी चाल से बचने की रणनीति तैयार कर रही है।
शिवसेना को यह दुख हमेशा सालता रहा है कि जिस बीजेपी ने राज्य में शिवसेना का हाथ थाम कर अपनी ज़मीन मज़बूत की, अब वही शर्तों की राजनीति कर रही है। क्या फिर दोनों के बीच कड़वाहट आएगी?
कांग्रेस में इस्तीफ़े और असमंजस का दौर चल रहा है, जबकि 5 महीने बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। देवेंद्र फडणवीस के 220 सीटों पर जीत के दावे के बाद कहाँ टिकेगी कांग्रेस?
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को महाराष्ट्र में जिन 14 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने जा रहे हैं वे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाले हैं।
2014 के चुनाव में मतदाताओं ने एकतरफ़ा वोट डाले थे, लेकिन इस बार चुनाव में वह मोदी लहर दिखाई नहीं दे रही है। हालाँकि सर्वेक्षण बीजेपी-शिवसेना के पक्ष में आते दिख रहे हैं, परिस्थितियाँ बदली हैं। तो किस करवट बैठेगा ऊँट?
क्या बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बाद भी पार्टी के शीर्ष नेताओं में अभी भी कोई कसक या गाँठ रह गयी है? एक दिन पहले ‘सामना’ में छपे संपादकीय को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है।
महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी-शिवसेना गठजोड़ को हराने के लिए कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस आघाडी यानी गठबंधन की नज़र प्रकाश आम्बेडकर-असदउद्दीन ओवैसी की वंचित आघाडी पर है।