भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में गौतम नवलखा की याचिक पर सुप्रीम कोर्ट में आख़िरकार सुनवाई हुई। लेकिन इससे पहले एक-एक कर पाँच जजों ने ख़ुद को अलग कर लिया था। अधिकतर जजों ने कोई कारण नहीं बताया था। ऐसा क्यों हुआ? सत्य हिंदी पर देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को 15 अक्टूबर तक गिरफ़्तारी से राहत दे दी है। यानी अगली सुनवाई तक उनकी गिरफ़्तारी नहीं हो सकती है।
क्या असहमति के बिना लोकतंत्र संभव है? इस पर सरकारें भले ही घालमेल करती हों, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने साफ़ संदेश दिया है कि असहमति लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।