बरेली जिला कोर्ट के जज रवि कुमार दिवाकर की मंशा पर कोई सवाल न उठाते हुए ‘लव जिहाद’ पर की गयी उनकी विवादास्पद व्याख्या की समीक्षा बहुत जरूरी है। जिस तरह पश्चिम बंगाल के कई पूर्व जजों पर आरोप लगे कि वे अपने कार्यकाल में ही आरएसएस और भाजपा के संपर्क में थे। बाद में कुछ तो सांसद और विधायक बने, मंत्री बने। ऐसे में इस ब्रीड के जजों के फैसलों की समीक्षा का रास्ता सुप्रीम कोर्ट को निकालना चाहिए। वरना न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता पर जो खतरा दिखाई दे रहा है, उसका अंजाम खतरनाक होगा।