दिल्ली के चुनाव में क्या होगा? क्या झारखंड की तरह ही नतीजे आएँगे? सीएसडीएस के सर्वे में साफ़ संकेत हैं कि झारखंड में 'हिंदुत्ववादी और राष्ट्रवादी' मुद्दे नहीं चले। तो क्या दिल्ली में ये चल पाएँगे? क्या मोदी-शाह रणनीति बदलेंगे?
दिल्ली में अब तक दो बार ऑड-ईवन लगाया जा चुका है, लेकिन नतीजा कोई ख़ास नहीं हुआ। इसके अलावा इतने लोगों को छूट दी जा रही है कि यह बेमानी साबित हो सकता है।
महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों के बाद बीजेपी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि वह झारखंड के साथ दिल्ली में भी चुनाव करा ले। दिल्ली में उसे अब राम मंदिर पर कोर्ट के फ़ैसले से ही उम्मीद है।
दिल्ली-एनसीआर में हर तरफ़ धुआँ-धुआँ सा है। धुआँ क्या, पूरा का पूरा ज़हर सा है। दीपावली के एक दिन बाद जैसी स्थिति थी उसके अगले दिन यह और ख़राब हो गई। इस स्तर तक ख़राब कि यह जानलेवा हो गई है।
दिल्ली में ऑड-ईवन फ़ॉर्मूला 4 से 15 नवंबर तक यानी 12 दिनों तक सुबह आठ से रात आठ बजे तक लागू होगा। ऑड-ईवन से कुछ विशेष परिस्थितियों में छूट की भी घोषणा की गई है। किनको मिलेगी छूट?
दिल्ली में प्रदूषण के मामले पर अरविंद केजरीवाल ने दावा किया है कि उनकी सरकार के आने के बाद प्रदूषण कम हो गया। प्रदूषण कम करने में उनका श्रेय लेना कितना जायज है?
जिस दिन आप दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर बुरी तरह हारी थी, शायद उसी दिन केजरीवाल ने फ़ैसला कर लिया था कि अब सरकारी ख़ज़ाने का मुँह मुफ़्त सुविधाओं के लिए खोल देंगे।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी ख़त्म हो जायेगी? लेकिन एक सर्वे में वह बात निकलकर आई है जो चौंकाने वाली है।
दिल्ली में हुए कुछ पिछले चुनावों के आँकड़ों से यह समझा जा सकता है कि अगर ‘आप’ और कांग्रेस का गठबंधन होता तो बीजेपी के लिए ख़ासी मुश्किल पैदा हो सकती थी।
दिल्ली में गठबंधन की बातचीत टूटने के बाद अरविंद केजरीवाल को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने से जुड़ा राहुल गाँधी के बयान और उस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री का पलटवार आख़ि क्या साबित करता है?
अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि राहुल गाँधी ने गठबंधन से इनकार कर दिया है। क्या गठबंधन न होने से दोनों दलों को नुक़सान होगा। देखिये वरिष्ठ पत्रकार शैलेष और आशुतोष की चर्चा।