भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पर नजर डालिए। मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और उनकी हत्या की एक राजकीय संस्कृति विकसित हुई। प्रसिद्ध विचारकर और लेखक अपने स्तंभ वक्त बेवक्त में बता रहे हैं मोनू मानेसर उस संस्कृति का हिस्सा है। पढ़िए यह विचारोत्तेजक लेखः
भारत में पहले दौर के पूंजीपतियों और मौजूदा दौर के पूंजीपतियों का महीन अंतर समझा रहे हैं पत्रकार और लेखक अपूर्वानंद। उनके मुताबिक पहले दौर के पूंजीपति राष्ट्र निर्माण में भी भूमिका निभाते रहे हैं। नया दौर सेठ तंत्र विकसित कर रहा है, जो सिर्फ अपने मुनाफे के बारे में सोचता है।
असम में बाल विवाह रोकने के नाम पर पुलिस ने तरीब ढाई हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। आरोप है कि यह कार्रवाई समुदाय विशेष पर की जा रही है। दूसरी तरफ एक सामाजिक समस्या का हल असम की बीजेपी सरकार पुलिसिया कार्रवाई में तलाश हो रही है जो तमाम सवाल खड़े करता है।
आज 30 जनवरी है यानी महात्मा गांधी का शहीद दिवस। गांधी की शहादत पर बहस आज भी जारी है। खैर अब तो गोडसे का महिमा मंडन करने वालों की एक पूरी जमात तैयार हो चुकी है। इस लेख में लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद ने गांधी को अपने नजरिए से समझने की कोशिश की है।
गुजरात के दंगों की गुप्त ब्रिटिश जांच और उस पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री पर भले ही भारत में बैन लग गया हो लेकिन इस बहाने गुजरात दंगों को लेकर वो तमाम सवाल फिर से उभर आए हैं जो उस समय उठे थे...और आज भी उठ रहे हैं।
एक ही पूजा घर में भिन्न भिन्न देवी देवताओं की छवियों से हिंदू मन में कभी भी दुविधा या भ्रम नहीं होता। अगर देवी देवता मात्र अलग अलग रूपाकार नहीं, अलग-अलग विचारों या भावों का प्रतिनिधित्व करते हैं तो क्या उनके अर्थ पर कभी सामाजिक विचार किया गया है?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के कमरे में उनके पीछे गाँधी की तसवीर की अनुपस्थिति को लेकर लगातार सवाल पूछा जा रहा है। गाँधी की तसवीर न होने के पीछे क्या वजह हो सकती है?