पुलवामा में मोदी सरकार की नाकामी पर जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक बहुत बड़ा खुलासा कर चुके हैं। लेकिन देश के मुख्यधारा के मीडिया ने सारे मामले पर ऐसे चुप्पी साध ली है, जैसे कुछ हुआ ही न हो। चिन्तक और सत्य हिन्दी के स्तंभकार अपूर्वानंद ने उसी खामोशी के अंदर झांकने की कोशिश की है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पिछले दिनों बीबीसी डॉक्यूमेंट्री दिखाने के मुद्दे पर कुछ छात्रों पर कार्रवाई की गई थी। लेकिन आरोपी छात्रों ने साफ कह दिया है कि वो माफी नहीं मांगेंगे। क्योंकि उन्होंने कोई गलती नहीं की। इस घटना के संदर्भ में प्रसिद्ध लेखक और स्तभंकार अपूर्वानंद ने सत्य हिन्दी के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में आरएसएस, एबीवीपी, बीजेपी की गतिविधियों पर टिप्पणी की है। जरूर पढ़िएः
देश के कई राज्यों में रामनवमी पर हुई हिंसा के बीच दुनिया के अन्य देशों में विविधता में एकता की तलाश करते लेखक और चिन्तक अपूर्वानंद अपने साप्ताहिक कालम में।
भारतीय विश्वविद्यालयों में भारत-पाकिस्तान के लोकप्रिय लेखकों मंटो, फैज अहमद पर प्रतिबंध लगाने की अप्रत्यक्ष कोशिश क्या इशारा कर रही है। प्रसिद्ध लेखक-पत्रकार-चिन्तक अपूर्वानंद इसके पीछे कुछ और देख रहे हैं। आप भी जानिएः
कांग्रेस पार्टी आखिर किस दुविधा का शिकार है। संवैधानिक संस्थाओं को बचाने की मुहिम को लेकर उसकी सोच और एक्शन में विरोधाभास क्यों है। जिन तमाम महान संसदीय परंपराओं को उसने बनाया है, उसे बचाना उसकी ही जिम्मेदारी है। जानिए लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद और क्या कहना चाहते हैंः
हिन्दी के जाने-माने कवि अशोक वाजपेयी ने रेख्ता और अर्थ कल्चरल फेस्ट के कार्यक्रम में कविता से पढ़ने से मना कर दिया। क्योंकि रेख्ता ने उनसे राजनीतिक कविताएं नहीं पढ़ने को कहा था। क्या अशोक वाजपेयी ने ऐसा करके ठीक किया, लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद ने इसी का जायजा इस लेख में लिया है।
भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पर नजर डालिए। मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा और उनकी हत्या की एक राजकीय संस्कृति विकसित हुई। प्रसिद्ध विचारकर और लेखक अपने स्तंभ वक्त बेवक्त में बता रहे हैं मोनू मानेसर उस संस्कृति का हिस्सा है। पढ़िए यह विचारोत्तेजक लेखः
भारत में पहले दौर के पूंजीपतियों और मौजूदा दौर के पूंजीपतियों का महीन अंतर समझा रहे हैं पत्रकार और लेखक अपूर्वानंद। उनके मुताबिक पहले दौर के पूंजीपति राष्ट्र निर्माण में भी भूमिका निभाते रहे हैं। नया दौर सेठ तंत्र विकसित कर रहा है, जो सिर्फ अपने मुनाफे के बारे में सोचता है।
असम में बाल विवाह रोकने के नाम पर पुलिस ने तरीब ढाई हजार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। आरोप है कि यह कार्रवाई समुदाय विशेष पर की जा रही है। दूसरी तरफ एक सामाजिक समस्या का हल असम की बीजेपी सरकार पुलिसिया कार्रवाई में तलाश हो रही है जो तमाम सवाल खड़े करता है।
आज 30 जनवरी है यानी महात्मा गांधी का शहीद दिवस। गांधी की शहादत पर बहस आज भी जारी है। खैर अब तो गोडसे का महिमा मंडन करने वालों की एक पूरी जमात तैयार हो चुकी है। इस लेख में लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद ने गांधी को अपने नजरिए से समझने की कोशिश की है।
गुजरात के दंगों की गुप्त ब्रिटिश जांच और उस पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री पर भले ही भारत में बैन लग गया हो लेकिन इस बहाने गुजरात दंगों को लेकर वो तमाम सवाल फिर से उभर आए हैं जो उस समय उठे थे...और आज भी उठ रहे हैं।
एक ही पूजा घर में भिन्न भिन्न देवी देवताओं की छवियों से हिंदू मन में कभी भी दुविधा या भ्रम नहीं होता। अगर देवी देवता मात्र अलग अलग रूपाकार नहीं, अलग-अलग विचारों या भावों का प्रतिनिधित्व करते हैं तो क्या उनके अर्थ पर कभी सामाजिक विचार किया गया है?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के कमरे में उनके पीछे गाँधी की तसवीर की अनुपस्थिति को लेकर लगातार सवाल पूछा जा रहा है। गाँधी की तसवीर न होने के पीछे क्या वजह हो सकती है?