उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले में मंगलवार को देर शाम हुई एक पुलिसकर्मी की नृशंस हत्या और एक दारोग़ा को ख़ून से तरबतर कर दिए जाने की घटना ने लोगों को गत वर्ष कानपुर के बिकरू कांड की याद ताज़ा कर दी।
हिंदी रंगकर्म का आकार जब निरंतर संकुचित होता जा रहा है और ज़रूरत उसके भीतर लोक नाट्य के नए-नए तत्वों और विचारों के समावेश की है, तब बंसी कौल का चले जाना एक वटवृक्ष के ढह जाने के समान है।
यूपी में लव जिहाद के नाम पर युवा दंपत्ति की घेराबंदी करना कोई हालिया मसला नहीं। सालों पहले नरेंद्र और नजमा ने इसे तब महसूस किया था जब निरपराध होने के बावजूद उन्हें हत्या के एक झूठे मामले में अभियुक्त बनाकर जेल भेज दिया गया था।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री का कहना है कि किसान आंदोलन पर जैसी सख्ती यूपी सरकार बरत रही है उसका दूसरा उदाहरण देश में और कहीं देखने को नहीं मिलता।
हाथरस में हुई बलात्कार की लोमहर्षक घटना को झुठलाने की कोशिशों में की गयी कार्रवाई में मथुरा, गौतमबुद्ध नगर और हाथरस में तैनात एसटीएफ़ अपने ही जाल में फंस गई है।
क्या दिल्ली के बॉर्डर पर जन्म लेने वाले किसान धरने भी इक्कीसवीं सदी के चम्पारण में विकसित होने की दिशा में है? क्या यह धरना भी बीजेपी की घराना पूंजीवाद की राजनीति के ऊपर चढ़े हिन्दूवाद के मुलम्मे की चूलें हिला कर रख देने की तैयारी कर रहा है?
हाथरस की घटना के वे अकेले 4 अभियुक्त नहीं हैं जिनके ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई है बल्कि अभियुक्तों की ऐसी फ़ौज है जो शासन और प्रशासन के ऊंचे-नीचे पदों पर क़ाबिज़ है। सबसे बड़ा न्यायिक सवाल यह है कि इस लोगों के विरुद्ध चार्जशीट कौन दायर करेगा और कब?
आज़ादी के बाद के दशकों में हुए देश के सबसे बड़े किसान आंदोलन को घूम फिर कर लेफ़्ट के साथ जोड़कर क्यों देखा जा रहा है? क्या लेफ़्ट वाक़ई नए सिरे से प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभर रहा है?
क्या किसान आंदोलन को ‘अल्ट्रा लेफ़्ट’ द्वारा अगवा किये जाने के 'इंटेलिजेंस ब्यूरो' के आरोप में सचाई है? इसे लेफ़्ट के साथ जोड़कर क्यों देखा जा रहा है? क्या लेफ़्ट वाक़ई नए सिरे से प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभर रहा है?
दिल्ली से सटे ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे मेरठ के 70 वर्षीय किसान ने एनडीटीवी के संवाददाता से कहा - ‘हम मोदी जी के बड़े शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने हिन्दू मुसलमान में बँट गए हम लोगों को इस आंदोलन के बहाने दोबारा जोड़ कर एक कर दिया।’
'यूनेस्को विश्व धरोहर' में शुमार फ़तेहपुर सीकरी की देख-रेख का ज़िम्मा 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' का है, लेकिन वह दुर्दशा का शिकार है। आख़िर इसकी देखरेख क्यों नहीं हो रही है?
मुंबई पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने के एक आपराधिक कृत्य में ‘रिपब्लिक टीवी’ के सम्पादक अर्णब गोस्वामी को गिरफ़्तार किया तो बीजेपी समर्थन में क्यों कूद पड़ी? बीजेपी शासित राज्यों में पत्रकारों के साथ कैसा सलूक?