बीजेपी नेतृत्व ने महज 115 दिन पुराने मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को हटा कर पुष्कर सिंह धामी को राज्य का नया मुख्यमंत्री बना तो दिया है लेकिन इससे पार्टी के भीतर जैसा विरोध हुआ है उससे क्या मोदी शाह की हनक फीकी नहीं पड़ी है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर चुके हैं लेकिन इन दो सालों में वह अपने मंत्रिपरिषद को भी पूरी तरह आकार नहीं दे पाए हैं।
वर्षों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहाँ मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। वनों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश के वन क्षेत्र का सिकुड़ना पर्यावरण की दृष्टि से बेहद चिंताजनक है।
सरकार ने कोरोना की वैश्विक महामारी से निपटने के सिलसिले में हर फ़ैसला अपने राजनीतिक नफा-नुक़सान को ध्यान में रखकर और अपनी छवि चमकाने के मक़सद से किया है। इससे कोरोना वैक्सीनेशन का अभियान भी बुरी तरह लड़खड़ा गया है।
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के सात सालों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था किस तरह तबाह हुई, बेरोजगारों की समस्या में कितना इजाफा हुआ, संसद, न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की साख कितनी चौपट हुई?
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में जारी किसानों के आंदोलन को छह महीने पूरे हो चुके हैं। यह आंदोलन न सिर्फ़ मोदी सरकार के कार्यकाल का बल्कि आज़ाद भारत का ऐसा सबसे बड़ा आंदोलन है जो इतने लंबे समय से जारी है।
जिस तरह गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों को समझ में नहीं आ रहा है कि कोरोना का इलाज कैसे किया जाए, वैसे ही भारत सरकार के इन विशेषज्ञों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
पश्चिम बंगाल के मामले में लगभग सभी टीवी चैनलों और सर्वे एजेंसियों के एग्ज़िट पोल औंधे मुँह गिरे हैं। एक बार फिर साबित हुआ कि एग्ज़िट पोल की कवायद पूरी तरह बकवास होती है।
देश के तमाम हिस्सों की तरह देश की राजधानी दिल्ली में भी कोरोना के कहर से हाहाकार मचा हुआ है। अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों पर कतार में खड़े हैं। ऑक्सीजन के अभाव में मरीज मर रहे हैं। तो सांसद कहाँ हैं?
पश्चिम बंगाल में जारी विधानसभा चुनाव के बीच कोरोना संक्रमण के हालात कितने भयावह शक्ल ले चुके हैं, इसे कोलकाता हाई कोर्ट की बेहद तल्ख टिप्पणियों से समझा जा सकता है।
बीजेपी के तमाम नेता और केंद्रीय मंत्रियों का अक्सर कहते रहे हैं कि वे राहुल गांधी की किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन होता यह है कि राहुल के सुझाव को ही आख़िरकार सरकार मानती है।
चुनाव आयोग ने पिछले महीने के तीसरे सप्ताह में केरल की तीन राज्यसभा सीटों के चुनाव की तारीख़ का ऐलान किया तो क़ानून मंत्रालय ने उसे चुनाव टालने का निर्देश दिया। चुनाव आयोग ने इसे टाल भी दिया। फिर इसे अपना फ़ैसला बदलना पड़ा।
देश में पुलिस के बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाने का संवैधानिक समाधान नहीं निकाला जाएगा, तो देश को पूरी तरह पुलिस स्टेट में तब्दील होने से नहीं रोका जा सकेगा। यूपी में एनएसए का इस्तेमाल इसका उदाहरण है।
कोरोना की वैश्विक महामारी ने एक साल पहले जब भारत को अपनी चपेट में लेना शुरू किया था तब केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने सीएए और एनआरसी वाले आंदोलन को दबा दिया था। अब किसान आंदोलन है।