मणिपुर उस आग में जल रहा है जिसकी चेतावनी डॉ. भीमराव आंबेडकर ने आज़ादी के समय ही दे दी थी। जानिए, उन्होंने क्यों कहा था कि यदि पार्टियाँ धर्म को देश से ऊपर रखेंगी तो हमारी आज़ादी दूसरी बार ख़तरे में पड़ जाएगी।
गीता प्रेस को सम्मानित किए जाने के मुद्दे पर वरिष्ठ टिप्पणीकार रविकांत का कहना है कि जो संस्था हिन्दू मिथकों को स्थापित करने में जुटी है, उसको मौजूदा दौर में सम्मानित किए जाने पर हैरानी नहीं होना चाहिए।
देश में फिर से जातिवार जनगणना की मांग ने जोर पकड़ा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नये सिरे से इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की है। जानिए संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर जातिवार जनगणना जैसे विचार पर क्या राय रखते थे।
आज गणतंत्र दिवस पर संविधान को बचाने की शपथ लेने का दिन है। आज यह जानना भी जरूरी है कि संविधान बनने के लिए डॉ आंबेडकर ने अपने पहले भाषण में क्या कहा था। सत्य हिन्दी बाबा साहेब के उस भाषण को हूबहू प्रकाशित कर रहा है।
बाबा साहब आंबेडकर ने हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म क्यों अपनाया था? क्या इस वजह को टटोलने की कोशिश की गई? आख़िर उनके द्वारा दिलाई गई 22 प्रतिज्ञाओं को क्यों दोहराया जा रहा है?
बीजेपी दिल्ली के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम का इस्तीफा मांग रही है। उसका कहना है कि दिल्ली में बौद्ध दीक्षा कार्यक्रम आयोजित कर गौतम ने हजारों हिन्दुओं को बौद्ध बना दिया। हालांकि वो आंबेडकर की शपथ दोहराने का कार्यक्रम था। उस कार्यक्रम में हिन्दू विरोधी बातें हुईं। आप एक तरफ हिन्दू हित की बात करती है तो दूसरी तरफ हिन्दू देवी देवताओं को गालियां दी जा रही हैं। यह मुद्दा गरमा रहा है।
डॉ अंबेडकर अखण्ड भारत के वैश्विक नेता थे। क्या बाबा साहेब के विचारों से छुआछूत की जा रही है और उनकी लोकप्रियता का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है।
आंबेडकर समता पर आधारित एक आर्थिक शक्ति संपन्न लोकतांत्रिक भारत बनाना चाहते थे। लेकिन क्या हम आंबेडकर के सपनों का भारत बना पाए हैं? अगर बना पाए हैं तो कितना?
दिल्ली हाई कोर्ट की जज प्रतिभा एम सिंह ने मनुस्मृति की तारीफ की तो यह ग्रंथ फिर से चर्चा में है। इसी के साथ इस ग्रंथ में लिखी महिला विरोधी बातों पर भी बहस हो रही है। तमाम महिला संगठनों ने इसी आधार पर जज के बयान का विरोध किया है। आइए जानते हैं कि इस ग्रंथ में क्या सचमुच महिला विरोधी बातें लिखी हैं?
बाबा साहब आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उनके जीवन संघर्ष और समता-न्याय पर आधारित उनकी उदार लोकतंत्र की अवधारणा से सीखने की ज़रूरत है। वह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और हिन्दुत्व की वैचारिकी से जीवन भर जूझते रहे।
संविधान और लोकतंत्र पर सत्तापक्ष और हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जितना ही खुलकर हमला हो रहा है उतना ही डॉ. आंबेडकर और उनकी वैचारिकता की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है।
देश ने स्वतंत्रता के बाद सैद्धांतिक रूप से आत्मनिर्भरता, समृद्धि के जो भी बदलाव देखे हैं वह डॉ. भीमराव आम्बेडकर के संविधान को मूलरूप से अपनाने के बाद अनुभव किए हैं।
हिन्दू धर्म त्यागने के ऐलान के बाद डा. आंबेडकर ने विकल्प के तौर पर विभिन्न धर्मों पर विचार किया। एक अस्पृश्य हिन्दू के रूप में जन्मे बाबा साहब के लिए स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों के साथ दलित समाज के उत्थान का सवाल सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर पर अमित शाह के बयान से बवाल मचा है। बीजेपी किस आधार पर खुद को आंबेडकर की नीतियों को लागू करने वाली बता रही है? जानिए, आरएसएस का प्रेम वास्तविक है या उन्हें एक टूल के रूप में इस्तेमाल कर रही है?