डॉ अंबेडकर अखण्ड भारत के वैश्विक नेता थे। क्या बाबा साहेब के विचारों से छुआछूत की जा रही है और उनकी लोकप्रियता का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है।
आंबेडकर समता पर आधारित एक आर्थिक शक्ति संपन्न लोकतांत्रिक भारत बनाना चाहते थे। लेकिन क्या हम आंबेडकर के सपनों का भारत बना पाए हैं? अगर बना पाए हैं तो कितना?
दिल्ली हाई कोर्ट की जज प्रतिभा एम सिंह ने मनुस्मृति की तारीफ की तो यह ग्रंथ फिर से चर्चा में है। इसी के साथ इस ग्रंथ में लिखी महिला विरोधी बातों पर भी बहस हो रही है। तमाम महिला संगठनों ने इसी आधार पर जज के बयान का विरोध किया है। आइए जानते हैं कि इस ग्रंथ में क्या सचमुच महिला विरोधी बातें लिखी हैं?
बाबा साहब आंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उनके जीवन संघर्ष और समता-न्याय पर आधारित उनकी उदार लोकतंत्र की अवधारणा से सीखने की ज़रूरत है। वह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था और हिन्दुत्व की वैचारिकी से जीवन भर जूझते रहे।
संविधान और लोकतंत्र पर सत्तापक्ष और हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जितना ही खुलकर हमला हो रहा है उतना ही डॉ. आंबेडकर और उनकी वैचारिकता की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है।
देश ने स्वतंत्रता के बाद सैद्धांतिक रूप से आत्मनिर्भरता, समृद्धि के जो भी बदलाव देखे हैं वह डॉ. भीमराव आम्बेडकर के संविधान को मूलरूप से अपनाने के बाद अनुभव किए हैं।
हिन्दू धर्म त्यागने के ऐलान के बाद डा. आंबेडकर ने विकल्प के तौर पर विभिन्न धर्मों पर विचार किया। एक अस्पृश्य हिन्दू के रूप में जन्मे बाबा साहब के लिए स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों के साथ दलित समाज के उत्थान का सवाल सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के प्रति आरएसएस का प्रेम वास्तवकि है या हिन्दुत्व के तहत सभी हिन्दुओं को एकजुट करने में वह उन्हें एक टूल के रूप में इस्तेमाल कर रही है?
ख़बर है कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के मुंबई स्थित घर ‘राजगृह’ पर तोड़फोड़ की गई है। यह घटना 7 जुलाई की है। जहाँ गमले तो तोड़े ही गए, सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ डाले गए।
डॉ. आंबेडकर दलितों को हिंदू धर्म की गुलामी पर आधारित वर्ण व्यवस्था से बाहर निकालना चाहते थे। बौद्ध धर्म में प्रगतिशील विचारों की मौजूदगी के कारण ही उन्होंने इसे अपनाया।
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन के बीच गुरुवार को बुद्ध पूर्णिमा की सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सुन कर कई तरह के ख़याल आए।
आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसंबर 1956) ने भारत की एकता और अखंडता का सपना देखा। उनका मानना था कि जातिवाद और जातीय घृणा की वजह से देश का पतन हो रहा है।
आर्थिक जगत में डॉ. भीमराव आम्बेडकर के योगदान को हमेशा कमतर आँका गया है। आज़ादी के बाद अगर उन्हें समय मिलता, तो निश्चित ही अर्थशास्त्री के रूप में उनकी सेवाओं का लाभ दुनिया ले पाती।
महिलाओं की आज़ादी के पैरोकार आम्बेडकर के देश में कभी हैदराबाद तो कभी उन्नाव तो कभी कहीं और महिलओं के बलात्कार व हत्याओं के मामले सामने आ रहे हैं। आम्बेडकर क्या ऐसा भारत बनाना चाहते थे?