अमेरिका उसी मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति बनाएगा जिसके नेतृत्व में तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी व नेटो सैनिकों के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा है।
तालिबान के सैन्य दस्ते के प्रमुख मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर अफ़ग़ानिस्तान पहुँच चुके हैं, उन्होंने अपने विरोधी गुलबुद्दीन हिक़मतयार समेत कई लोगों से बात की है और सरकार बनाने की दिशा में कदम उठाया है।
तालिबान ने अपने पहले शासन में अपने राजनीतिक विरोधियों, आम नागरिकों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को ठिकाने लगा दिया था। बीते महीनों में भी तालिबान ने कई नागरिकों की हत्या की है।
तालिबान भले ही एक उदारवादी चेहरा पेश करने की कोशिश कर रहा है, उसके लड़ाकों ने अल्पसंख्यक शिया हज़ारा और अफ़ग़ान सेना के लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है।
ताज़िक, उज़बेक, हज़ारा क़बीले के लोग एकजुट होकर नॉदर्न अलायंस जैसा संगठन बनाने की कोशिश में हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को ज़बरदस्त चुनौती दे सके।
ख़बर ये आ रही है कि अखुंदज़ादा पाकिस्तान की सेना की हिरासत में है। भारत सरकार को विदेशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों से यह जानकारी मिली है और इस बारे में और ज़्यादा जानकारी जुटाई जा रही है।
तालिबान के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है पंजशिर प्रांत। पूरे मुल्क़ में यही एक प्रांत है, जहां पर तालिबान तो छोड़िए, सोवियत संघ से लेकर अमेरिका तब कब्जा नहीं कर पाए और इस बात के लिए पंजशिर की मिसाल दी जाती रही है।
हिन्दुस्तान में तालिबान के समर्थन या विरोध की बहस बड़ा सियासी मुद्दा बन चुकी है। देशभक्ति और गद्दार की परिभाषाएं इस बहस के दौरान टेलीविजन चैनलों पर गढ़ी जा रही हैं।
काबुल में रहने वाली परिसा फदायी ने काबुल से 'सत्य हिंदी' से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा कि तालिबानियों ने काबुल में लोगों को घरों में ही रहने के आदेश जारी किए हैं।
भारत के अलग अलग शहरों में अफगानिस्तान के बहुत से छात्र पढ़ते हैं। अफगानिस्तान में सत्ता पलट के बाद इनके लिए मुसीबत हो गई है। और बड़ी मुसीबत यह है कि इनमें से बहुतों के वीसा खत्म हो रहे हैं। क्या करें, कहां जाएं, यह सवाल है इनके आगे। आलोक अड्डा में आज ऐसे ही कुछ छात्रों से बातचीत
पंजशिर के शेर कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद तालिबान को चुनौती देने को तैयार हैं, उन्होंने दूसरे लोगों के साथ मिल कर 'सेकंड रेजिस्टेन्स' नामक मोर्चा बनाया है।