असम के पंचायत चुनावों में एक विचित्र स्थिति दिख रही है। यहाँ बीजेपी और एजीपी जो मिल कर सरकार चला रहे हैं, पंचायत चुनावों में एक-दूसरे पर हमला कर रही हैं। असम में पंचायत चुनाव के पहले चरण के लिए 5 दिसंबर को मतदान हो चुका है और दूसरे चरण का मतदान 9 दिसंबर को होगा।
पहले गठबंधन, अब हमला
बीजेपी ने असम के विधानसभा चुनाव के दौरान असम गण परिषद (एजीपी) के साथ गठबंधन किया। बीजेपी बिग ब्रदर बनी, उसने एजीपी को कम सीटें दीं और ज़्यादा अपने पास रखीं। बीजेपी को अकेले ही बहुमत के लायक सीटें मिली हैं। अब पंचायत चुनाव में बीजेपी जमकर एजीपी पर हमला कर रही है। एजीपी, बीजेपी के साथ सरकार में भी है। लेकिन यह गठबंधन कब टूट जाए, कहा नहीं जा सकता।विधेयक के विरोध में है अगप
एजीपी प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ है। वह सरकार में रहते हुए विधेयक का विरोध कर रही है जबकि बीजेपी इसके पक्ष में है। वह धर्म के आधार पर विभाजित कर इस विधेयक के जरिए हिंदुओं को नागरिकता देने के पक्ष में है। लेकिन असम समझौते के ज़रिए सत्ता में आई एजीपी इसका विरोध कर रही है। असम के राजनीतिक दल और संगठन इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। एजीपी और इन दलों-संगठनों का कहना है कि यदि विधेयक को पारित कर दिया गया तो असम समझौते का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। असम समझौते के अनुसार 24 मार्च 1971 के बाद असम आए सभी लोगों को जाना होगा। असम और विदेशियों का बोझ नहीं उठा सकता।
एजीपी के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा
बीजेपी को लगता है कि विधेयक का विरोध करने के चलते अगप की स्थिति सृदृढ़ होगी। इसलिए उसने पंचायत चुनाव में ही एजीपी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। आने वाले लोकसभा चुनाव के पहले ज़मीनी स्तर पर क़ब्ज़ा करने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। पंचायत चुनाव का प्रचार हेलिकॉप्टरों से किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और डॉ. हिमंत विश्वशर्मा हेलिकॉप्टरों से प्रचार कर रहे हैं। एक घंटे तक हेलिकॉप्टर उड़ाने के लिए लगभग एक लाख रुपये का ख़र्च आता है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि बीजेपी पंचायत चुनाव पर कितना ख़र्च कर रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री तथा एजीपी के संस्थापक अध्यक्ष रहे प्रफुल्ल कुमार महंत कहते हैं कि इससे भ्रष्टाचार ही बढ़ेगा। पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई का कहना है कि बीजेपी के पास हेलिकॉप्टरों से प्रचार के लिए पैसे कहाँ से आ रहे हैं।
बीजेपी की स्थिति कमज़ोर
पंचायत चुनाव में वैसे तो बीजेपी की स्थिति कमज़ोर लगती है क्योंकि खुद मुख्यमंत्री सोनोवाल को अपने विधानसभा क्षेत्र माजुली में एक ही दिन में सात सभाएँ करनी पड़ी हैं। सोनोवाल ने पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री सोनोवाल अब तक अपनी सहयोगी पार्टी एजीपी पर कुछ नहीं बोले थे। लेकिन पंचायत चुनाव में उन्होंने हिमंत के एजीपी पर हमला करने के बाद ख़ुद भी हमला तेज़ कर दिया है। ढाई साल में राज्य सरकार का ग्राफ़ तेज़ी से नीचे गिरा है। भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई करने के वादे से आई सरकार ने कुछ मामलों में कार्रवाई कर चमक पैदा की तो कई अन्य मामलों में उसकी भूमिका संदिग्ध रही। यदि पंचायत चुनाव में बीजेपी की लोकप्रियता राज्य में घट गई तो उसकी सरकार में लोकसभा चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन देखने को मिलेगा। उसे प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक के मामले में भी अपने रुख में बदलाव करना पड़ेगा।
अल्फ़ा में शामिल हो रहे युवा
बीजेपी सरकार के शासन में राज्य के उग्रवादी फिर सक्रिय हो रहे हैं। विधेयक के ख़िलाफ़ राज्य में विरोध और केंद्र की लचर भूमिका को देखते हुए युवक-युवतियाँ अल्फ़ा में शामिल हो रहे हैं। हत्याओं, अपहरणों और बम विस्फोटों का दौर फिर से आ गया है। यह 90 के उग्रवाद प्रभावित असम की याद दिलाता है। इन सब वज़हों से लोगों का बीजेपी के प्रति राज्य में मोहभंग होता दिख रहा है। पर पाँच राज्यों के चुनाव के नतीजों के एक दिन बाद यानी 12 दिसंबर को पंचायत चुनाव के नतीजे आएँगे। इससे साफ़ होगा कि लोग बीजेपी के पक्ष में हैं या नहीं। यदि इसमें एजीपी की स्थिति सुदृढ़ नहीं हुई तो वह एक बार फिर बीजेपी के दबाव में उसके साथ लोकसभा चुनाव के लिए तालमेल कर लेगी। इस तरह उसका अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा। पर एजीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया तो लोकसभा चुनाव में वह अकेले मैदान में उतरेगी। इससे राज्य में एक बार फिर लंबे समय बाद क्षेत्रीय दलों का उज्जवल भविष्य दिखेगा।
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