पुलिस ने रोका कारवां
विस्थापन का दंश झेल रहे ये लोग मुआवज़े की मांग को लेकर प्रधानमंत्री से मिलकर अपना ज्ञापन देना चाहते थे। लेकिन प्रधानमंत्री के आग़मन से एक दिन पहले इन विस्थापितों का कारवां बढ़ा ही था कि वहां मौजूद पुलिस के जवानों ने बैरिकेडिंग कर उनकी यात्रा को वहीं रोक दिया। इस स्थिति में इन लोगों ने वहीं रुक कर प्रदर्शन को जारी रखा जिससे प्रदर्शनकारियों को रात भर खुले आसमान के नीचे ही रात गुजारनी पड़ी।
सुबह क़रीब 10:30 बजे प्रधानमंत्री का आग़मन हुआ लेकिन बावजूद इसके उन्हें ज्ञापन तक सौंपने नहीं दिया गया।
मिले जायज़ मुआवज़ा
प्रदर्शन में शामिल सिकुआ देवी ज़मीन के बदले ज़मीन की माँग करते हुए कहती हैं 'हमारी ज़मीन कश्मीर के टुकड़े जैसी थी। हम सरकार के पीछे तब तक पड़े रहेंगे जबतक हम लोगों को उचित मुआवज़ा व परिवार में किसी को नौकरी नहीं मिल जाती।' वहीं ज्ञापन न सौंप पाने से निराश मंगरू सिंह ने बताया कि सरकारी रिकॉर्ड में नौकरी व पैसे का भुगतान लिख दिया गया है, लेकिन वह नाकाफ़ी है। इस मामले को ज़ोरशोर से उठा रहे झारखंड के मंत्री के.एन त्रिपाठी कहते हैं 'प्रधानमंत्री के आगमन से पहले विस्थापित परिवारों की विभिन्न मांगों को लेकर हमने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था, लेकिन उनके आग़मन से पहले ही मुझे पुलिस ने हिरासत में ले लिया।' इस बारे में जब पलामू के आयुक्त मनोज झा से बात की गई तो उन्होंने इस पूरे मामले से ख़ुद को अनभिज्ञ बताया।
बिहार को फ़ायदा, झारखंड को परेशानी
मंडल डैम इलाके के लोग पीएम मोदी का दो मुद्दों पर विरोध कर रहे हैं। पहला मुद्दा, विस्थापितों को भूमि अधिग्रहण क़ानून के मुताबिक उचित मुआवज़ा देने की मांग है और दूसरा, चूंकि प्रस्तावित डैम का लगभग 80 फ़ीसदी पानी बिहार में जाना है, इसलिए प्रभावित ग्रामीणों की मांग है कि जहां पर डैम बन रहा है वहां के 4 ज़िलों को भी पानी दिया जाए। मंडल डैम परियोजना से बिहार को सबसे ज्यादा फ़ायदा होगा। मगर इसके लिए झारखंड को बड़ी कीमत चुकानी होगी। डैम के निर्माण से झारखंड की 38,508.21 एकड़ भूमि जलमग्न होगी, जिसमें पलामू टाइगर रिजर्व के आठ गांवों को हटाया जाना है। आकड़ों के मुताबिक़, इस डैम से क़रीब 1600 परिवार यानी क़रीब 6000 से अधिक लोग विस्थापित होंगे, जिनमें 5000 के क़रीब आदिवासी व अन्य लोग हैं।
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