हाथरस गैंगरेप केस के बाद इसी तरह का एक और मामला राजनीति के केंद्र में आ गया है। इस पर भी घात-प्रतिघात और आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं और राजनीतिक दल बिल्कुल संवेदनहीन होकर एक-दूसरे पर चोट कर रहे हैं।
चुप और गंभीर रहने वाले, नपा-तुला और बेहद ज़िम्मेदारी से बोलने वाले और राजनीतिक विरोधियों पर भी संतुलित टिप्पणी करने वाले नीतीश कुमार को क्या हो गया है? वह क्यों बार-बार आपा खो रहे हैं?
एबीपी न्यूज़-सी वोटर का दावा है कि यह सर्वे बिहार की सभी 243 सीटों पर किया गया और इस दौरान 30 हजार 678 लोगों से बात की गई। सर्वे 1 अक्टूबर से लेकर 23 अक्टूबर के बीच किया गया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहें या न चाहें, पर विधानसभा चुनाव में बेरोज़गारी एक मुद्दा बन ही गया है। राष्ट्रीय जनता दल ने शनिवार को जारी घोषणा पत्र में औपचारिक रूप से यह कहा गया है कि उसकी सरकार बनी तो 10 लाख लोगों को रोज़गार दिया जाएगा।
बिहार में 15 से 29 साल की उम्र के लगभग 27.6 प्रतिशत लोग ही किसी तरह के रोज़गार में है। बिहार को सोचना है कि उसका विधानसभा अनुच्छेद 370 पर काम करेगा या रोज़गार पर।
मोदी सरकार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस पर देश की जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप लगते रहें। क्योंकि एक ताज़ा वाक़या इसी ओर इशारा करता है।
बीजेपी के बड़े नेता चाहे वो जेपी नड्डा हों या फिर अमित शाह, भूपेंद्र यादव हों या फिर देवेंद्र फडणवीस- यह नहीं बता पाए हैं कि एलजेपी से एनडीए का नाता खत्म हो चुका है या नहीं।
खडसे का साफ इशारा बीजेपी की ओर था क्योंकि विपक्षी नेता यह आरोप लगाते रहते हैं कि उन्हें परेशान करने के लिए सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स, पुलिस का दुरुपयोग बीजेपी करती है।
जम्मू और कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे और अनुच्छेद 370 और 35 ए की बहाली के लिए संघर्ष करने का दम भर रहे राजनीतिक दल लंबी लड़ाई के लिए ख़ुद को तैयार करने में जुटे हुए हैं।