जिस तिकड़म के सहारे मणिपुर में बिना बहुमत के ही बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार का गठन किया गया था, उसी तिकड़म से वहां की सरकार को बचा लिया गया है। बावजूद इसके वहां पर राजनीतिक अस्थिरता और असंतोष बना रहेगा। मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह यदि अपने पद पर बने भी रहे तो उपमुख्यमंत्री के. जयकुमार के साथ चल रही उनकी खटास को समाप्त करना आसान नहीं होगा क्योंकि राज्य में हुए ताज़ा राजनीतिक घटनाक्रम की वजह एन. बिरेन सिंह के काम करने का तरीका है और इससे घटक दलों के साथ ही बीजेपी के विधायक भी खुश नहीं हैं।
मणिपुर की एन. बिरेन सिंह सरकार को बचाने के लिए बीजेपी ने एक तरफ़ कांग्रेस विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह पर दबाव बनाने के मद्देनज़र एक पुराने मामले में सीबीआई टीम को पूछताछ के लिए अचानक इम्फाल भेज दिया।
राजनीतिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने के लिए इम्फाल पहुंचे कांग्रेस के पर्यवेक्षक अजय माकन तथा सांसद गौरव गोगोई को वहां पहुंचते ही क्वारेंटीन कर दिया गया और वे चाहकर भी विधायकों से नहीं मिल पाए।
दूसरी तरफ, नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक और असम के प्रभावशाली मंत्री डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा तथा मेघालय के मुख्यमंत्री एवं नेशनल नेशनलिस्ट पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष और मेघालय के मुख्यमंत्री कर्नाड संगमा विशेष विमान से इम्फाल पहुंच गए और बाग़ी विधायकों से बात कर लौट आए। उनका तर्क है कि वे एक दिन में ही लौट आए, इसलिए उन्हें क्वारेंटीन में जाने की ज़रूरत नहीं थी।
गत बुधवार को वे दोनों एनपीपी के विधायकों को लेकर नई दिल्ली गए और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। इसलिए लगता है कि मणिपुर सरकार पर आया संकट फिलहाल टल गया है। इसमें डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा की भूमिका उल्लेखनीय रही है। हालाँकि शुरुआत में वह चुपचाप बैठे थे लेकिन बीजेपी आलाकमान के निर्देश पर सक्रिय हुए और इम्फाल से नई दिल्ली तक दौड़ते रहे।
गुवाहाटी लौटकर डॉ. हिमंता ने दावा किया कि संकट सुलझ गया है और मणिपुर में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार के समक्ष कोई संकट नहीं है। एनपीपी विधायकों का भी नई दिल्ली जाना इस बात का संकेत है कि उन लोगों ने फिर से सरकार को समर्थन देने का मन बना लिया है और वे जल्द ही राज्यपाल से मुलाकात कर मौजूदा सरकार को समर्थन का पत्र सौंप देंगे।
हालांकि घटक दल राज्य के नेतृत्व में बदलाव चाहते हैं। इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है। अब बीजेपी आलाकमान के पास दो विकल्प हैं। पहला विकल्प बिरेन सिंह की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाए या फिर उनके कामकाज का तरीका बदला जाए।
घटक दलों का आरोप है कि बिरेन सिंह शायद यह भूल गए हैं कि यह बीजेपी की नहीं, गठबंधन की सरकार है। उनका कहना है कि हमारे राजनीतिक विचार अलग-अलग हैं, इसलिए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार होना चाहिए और सरकार हर बड़े फैसले में घटक दलों की सहमति ले।
एनपीपी के मणिपुर के अध्यक्ष टी. किप्पेन ने एक बयान जारी कर आरोप लगाया था कि बीजेपी तानाशाह की तरह सरकार चला रही है।
बीजेपी ने एक संचालन समिति के गठन के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया था। जबकि राज्य में सरकार बनाने में एनपीपी के विधायकों की बड़ी भूमिका थी। बावजूद इसके उप मुख्यमंत्री तक के सारे विभाग छीन लिए गए हैं। सरकार में बीजेपी के साथ एनपीपी, नगा नेशनल फ्रंट, तृणमूल कांग्रेस और इकलौते निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं।
मणिपुर में सरकार के साढ़े तीन साल पूरे हो गए हैं। बीजेपी को पता है कि आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद 60 सदस्यीय विधानसभा में उसके मात्र 21 विधायक चुने गए थे, जबकि कांग्रेस 28 सीटें जीतकर सत्ता के दरवाजे पर पहुंच गई थी। सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने केंद्र में सत्ता में होने का लाभ उठाया।
विधायकों की तोड़फोड़
मिरिबाम के निर्दलीय विधायक को इम्फाल एयरपोर्ट से उठा कर गुवाहाटी लाया गया जबकि उन्होंने कांग्रेस को समर्थन देने का वादा किया था। उसी तरह एनपीपी पर डोरे डाले गये। कांग्रेस के एक विधायक से दल-बदल कराया गया और उनकी विधायकी चली गई। उसके बाद कांग्रेस के सात और विधायकों को तोड़ लिया। मणिपुर हाईकोर्ट ने इन विधायकों के विधानसभा परिसर में प्रवेश पर रोक लगा रखी है।
इतना ही नहीं, जब बिरेन सिंह के कामकाज के तरीके से नाराज एनपीपी, तृणमूल कांग्रेस के साथ बीजेपी के तीन विधायकों ने सर्मथन वापस ले लिया तो कांग्रेस के आग्रह के बाद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने में आनाकानी की गई। कुल मिलाकर बीजेपी को नाराज विधायकों को लाने का मौक़ा दिया गया। दूसरी ओर, कांग्रेस पर दबाव डालने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह से पूछताछ करने के लिए नई दिल्ली से सीबीआई की टीम पहुंच गई ताकि उन्हें उलझाए रखा जा सके। कांग्रेस के पर्यवेक्षकों को क्वारेंटीन के नाम पर होटल में बंद रखा गया।
इबोबी सिंह ने मीडिया से कहा कि इस वक्त की सीबीआई जांच के पीछे का क्या गुप्त एजेंडा है, यह तो पता नहीं लेकिन वे सीबीआई को सहयोग करने को तैयार हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सीबीआई अब तक चुप बैठी थी लेकिन जैसे ही बिरेन सरकार पर संकट आया और इबोबी ने नई सरकार के गठन में सक्रियता बढ़ाई तो सीबीआई नींद से जाग गई।
इस पूरे घटनाक्रम से यह तो स्पष्ट हो गया है कि मणिपुर बीजेपी में गुटबाज़ी बढ़ी है और सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष पैदा हुआ है। इसका असर सरकार के कामकाज पर पड़ना लाजिमी है। जो सपने दिखाकर बीजेपी ने सत्ता पर क़ब्ज़ा किया था, वह पूरा होता नहीं दिखता।
नगा समझौते पर नगा नेशनल फ्रंट की नजर है। यदि समझौते से वह नाख़ुश हुई तो शायद ही बीजेपी का समर्थन करे। मणिपुर की राजनीति में इस वक्त कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। फिलहाल यह संकट टलता दिख रहा है लेकिन अगले चुनाव में इसका असर पड़ेगा।
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