कर्नाटक में एक बार फिर राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों के बीच तनातनी शरू हो गई है। इस बार की तनातनी की वजह एक सरकारी महिला डॉक्टर का तबादला है। स्थानांतरण के पीछे सत्ताधारी जनता दल (सेक्युलर) पार्टी के विधायक के. महादेव का सरकार पर दबाव बताया जा रहा है। के. महादेव ने इस महिला डॉक्टर के ख़िलाफ़ पिछले साल शिकायत की थी, लेकिन सभी सरकारी डॉक्टर इस महिला डॉक्टर के समर्थन में आ गए थे, इसी वजह से विधायक के दबाव के बावजूद कुमारस्वामी सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पाई थी। लेकिन विधायक ने सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखा। सूत्र बताते हैं कि जब विधायक को लगा कि मुख्यमंत्री कुमारस्वामी महिला डॉक्टर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे तब उन्होंने पार्टी के बाग़ी होते विधायकों के ख़ेमे में चले जाने की कथित रूप से धमकी दी। इस धमकी की वजह से कुमारस्वामी को विधायक के दबाव के सामने झुकना पड़ा।
चूँकि महिला डॉक्टर के आला अधिकारियों ने इस पूरे मामले में उन्हें क्लीन चिट दी थी और विधायक को ही ग़लत ठहराया था, सरकार भी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती थी। लेकिन विधायक की धमकी ऐसी थी कि वह सरकार के अस्तित्व पर ही ख़तरा पैदा कर सकती थी, मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने डॉक्टर का ट्रांसफर करवा दिया। इस ट्रांसफर से सरकारी कर्मचारी काफ़ी नाराज़ हैं। ख़ास तौर पर स्वास्थ्य और चिकित्सा विभाग के अधिकारी और सरकारी डॉक्टर तो सरकार से ही दो-दो हाथ करने के मूड में दिखाई देने लगे हैं।
- ग़ौरतलब है, यह सारा मामला पिछले साल सितंबर माह के महीने में शुरू हुआ था। हुआ यूँ था कि 18 सितंबर की रात को पेरियापटनम से जेडीएस के विधायक महादेव की तबीयत बिगड़ गई थी। उन्होंने अपने एक अनुयायी को पेरियापटनम के तहसील अस्पताल जाने और वहाँ से डॉक्टर को लेकर उनके घर लाने भेजा। जब यह अनुयायी अस्पताल पहुँचा तब वहाँ डॉ. वीणा सिंह ड्यूटी पर थीं। डॉ. वीणा सिंह महिला रोग विशेषज्ञ हैं।
जब विधायक का समर्थक अस्पताल पहुँचा था तब डॉ. वीणा सिंह एक गर्भवती महिला की प्रसूति की तैयारी कर रही थीं। गर्भवती महिला किसी भी समय शिशु को जन्म दे सकती थीं। प्रसूति को ध्यान में रखते हुए डॉ. वीणा सिंह ने विधायक के घर जाने से साफ़ इनकार कर दिया।
समर्थक बिना डॉक्टर के ही घर लौट आया। जब विधायक को डॉक्टर के आने से मना करने वाली बात पता चली तब उन्होंने डॉक्टर को फ़ोन किया और घर आकर उनका इलाज करने को कहा। लेकिन इस बार भी डॉ. वीणा सिंह ने यह कहते हुए विधायक के घर जाने से इनकार कर दिया कि अस्पताल में एक गर्भवती महिला को उनकी सख़्त ज़रूरत है और चूँकि स्थिति इमरजेंसी वाली है वह विधायक के घर नहीं आ सकती हैं। सूत्रों के मुताबिक़, डॉक्टर के उनके घर नहीं जाने से विधायक भड़क गये और डॉक्टर के ख़िलाफ़ कथित रूप से शिकायत करने और नौकरी से हटवा देने की धमकी दी। इस धमकी का भी कोई असर महिला डॉक्टर पर नहीं हुआ।
इसके बाद विधायक ने महिला डॉक्टर के ख़िलाफ़ अच्छे से पेश न आने के अलावा बदसलूकी करने का आरोप लगाकर तुरंत कार्रवाई करने की माँग की। चूँकि विधायक मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बहुत क़रीबी हैं, उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री से बात की और बिना देर के महिला डॉक्टर को सस्पेंड करने को कहा। कुमारस्वामी जानते थे कि बिना जाँच के सरकारी डॉक्टर को निलंबित करने से सारे सरकारी कर्मचारी नाराज़ हो जाएँगे, उन्होंने जाँच का आदेश दिया और अपने क़रीबी विधायक को जाँच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई का भरोसा देकर उनका गुस्सा ठंडा किया।
जाँच रिपोर्ट में चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने डॉ. वीणा सिंह को क्लीन चिट दी और लिखा कि उन्होंने नियमों के अनुसार काम किया और सही तरह से अपनी ज़िम्मेदारी को निभाया। जाँच अधिकारियों ने इस आरोप को भी ख़ारिज किया कि डॉ. वीणा सिंह ने उनके साथ बदसलूकी की है।
- इसी धमकी की वजह से कुमारस्वामी को महिला डॉक्टर का ट्रांसफर करना पड़ा। लेकिन अब इस ट्रांसफर को सरकारी डॉक्टरों और दूसरे सरकारी कर्मचारियों ने प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है और मुख्यमंत्री से ट्रांसफर का ऑर्डर वापस लेने की माँग करने लगे हैं।
सियासी असर
एक विधायक के अड़ियल रवैय्ये ने मुख्यमंत्रीे को नई परेशानी में फँसा दिया है। हक़ीकत तो यह है कि मंत्री नहीं बनाए जाने से कांग्रेस और जेडीएस के कई विधायक नाराज़ हैं। बीजेपी इन्हीं विधायकों को अपने पाले में खींचने की कोशिश में है। दस विधायकों के भी बाग़ी हो जाने से कर्नाटक में सरकार गिर सकती है। इसी वजह से कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को 'खुश' रखने के लिए दोनों पार्टियों के आला नेता अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए हैं। इन आला नेताओं को सबसे ज़्यादा डर अपनी पार्टियों में लिंगायत समुदाय के विधायकों से है। गौरतलब है कि पेरियापटनम दक्षिण कर्नाटक के मैसूरु क्षेत्र में आता है और यहीं पर जेडीएस का दबदबा है।
ट्रांसफ़र से भी मुश्किलें बढ़ीं
और तो और, सरकारी डॉक्टरों पर हमले की घटनाओं में दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करने से कई सरकारी डॉक्टर पहले से ही काफ़ी नाराज़ हैं। अब डॉ. वीणा सिंह और विधायक महादेव के मामले ने सरकार और सरकारी डॉक्टरों के बीच तनाव बढ़ा दिया है। सरकार अपने कर्मचारियों को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि डॉ. वीणा सिंह के ट्रांसफर का विधायक महादेव के मामले से कोई लेना-देना नहीं है और यह रूटीन ट्रांसफर है। वहीं विधायक भी इस ट्रांसफर से अपना पल्ला झाड़ते दिख रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उस रात उनका ब्लड शुगर लेवल और बीपी दोनों डाउन हो गए थे जिसकी वजह से उनकी हालत इतनी ख़राब हो गई कि वह अस्पताल जाने की स्थिति में नहीं थे और इसी वजह से डॉक्टर को घर बुलवाना चाहते थे। बहरहाल, सरकार और विधायक की सफ़ाई से सरकारी डॉक्टर बिल्कुल संतुष्ट नहीं हैं और डॉ. वीणा के ट्रांसफर को रोकने की माँग पर अड़े हुए हैं। बड़ा सवाल यही है कि क्या डॉ. वीणा सिंह सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँगी और कोर्ट का दरवाजा खटखटाएँगी? फ़िलहाल वह मीडिया से बात नहीं कर रही हैं। सभी को उनके फ़ैसले का इंतज़ार है।
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