बुलंदशहर में मारे गए पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह हिन्दुत्ववादी संगठनों की आँख में काँटा बन गए थे और इन संगठनों ने तीन महीने पहले स्थानीय सांसद भोला सिंह को एक चिट्ठी लिख कर उनका तबादला करवाने और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की माँग की थी। उनकी शिकायत थी कि वे उनके धार्मिक आयोजनों में अडंगा लगाते थे।
बुलंदशहर बीजेपी की नगर ईकाई के महासचिव संजय श्रोत्रिय ने 1 सितंबर को यह ख़त लिखा। उस पर बीजेपी के स्याना के ब्लॉक प्रमुख, मंडल अध्यक्ष, मंडल उपाध्यक्ष और दूसरे कई स्थानीय नेताओं के दस्तख़त हैं।
उन्होंने सुबोध सिंह के ख़िलाफ़ कार्रवाई की भी माँग की थी।बुलंदशहर में बीजेपी, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने गोकशी का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया, थाने और कई गाड़ियों में आग लगा दी और तोड़फोड़ की। उसी दौरान किसी ने सिंह पर गोली चला दी और उनकी वहीं मौत हो गई। सिंह की छवि एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अफ़सर की है, जो किसी राजनीतिक दल के दबाव में न आता हो। उन्होंने दादरी में हुए मोहम्मद अख़लाक हत्याकांड की भी जाँच की थी।
दबाव के आगे नहीं झुके
कोबरापोस्ट ने सिंह से बात की थी और उसके आधार पर अपनी ख़बर में कहा था कि उस समय की सरकार ने सिंह पर दबाव डालने की कोशिश की थी, पर वे उसके दबाव में नहीं आए। ख़बर के मुताबिक़, सिंह ने कहा था कि उस समय की सरकार चाहती थी कि अख़लाक़ के घर से बरामद माँस के नमूने को वे भैंस के मीट से बदल दें
जबकि टेस्ट के आधार पर पता चल रहा था कि वह गोमांस ही था। पर उन्होंने ऐसा करने से साफ़ इनकार कर दिया था। इसी वजह से उनका तबादला भी कर दिया गया।कोबरापोस्ट की पूरी ख़बर पढ़ने के लिए
यहाँ क्लिक करें।सिंह के मामले से यह साफ़ होता है कि किस तरह कर्तव्यनिष्ठ अफ़सरों पर सरकार और सत्ताधारी दलों का दबाव होता है। मौजूदा दौर में यह दबाव बढ़ा हुआ है। यह इससे भी साफ़ होता है कि बुलंदशहर मामले में गोकशी के आरोप में जिन लोगों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराई गई है, उनमें दो नाबालिग हैं, दूसरे कई लोग उस इलाक़े में उस समय थे ही नहीं।
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