रोजर बिन्नी के बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में बनाए जाने की रिपोर्टें हैं। भारत के 1983 वर्ल्ड कप टीम के सदस्य रहे रोजर बिन्नी ने बीसीसीआई अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है। ख़ास बात यह रही कि रोजर बिन्नी के सामने किसी दूसरे सदस्य ने अध्यक्ष पद का नामांकन पत्र दाखिल नहीं किया है। तो क्या बिन्नी का चुना जाना तय नहीं है? इस सवाल से एक अहम सवाल यह उठ रहा है कि यदि बिन्नी का अध्यक्ष बनना तय है तो सौरव गांगुली को आख़िर अध्यक्ष पद पर दूसरा मौक़ा क्यों नहीं दिया जा रहा है?
यह सवाल इसलिए भी ज़्यादा उठ रहा है कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने इसके पीछे राजनीति को वजह बताया है। तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि बीजेपी ने पिछले साल के विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश की थी कि राज्य में बेहद लोकप्रिय गांगुली पार्टी में शामिल होंगे। तब पिछले साल राज्य में विधानसभा के चुनाव होने थे।
टीएमसी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी गांगुली को पार्टी में शामिल कराने में विफल रही। उन्होंने कहा कि इसीलिए बीजेपी ने गांगुली को 'अपमानित करने की कोशिश' किया है। रिपोर्ट है कि गांगुली को आईपीएल प्रमुख पद की पेशकश की गई थी। कहा जा रहा है कि बीसीसीआई का अध्यक्ष रहा व्यक्ति क्या उसके अंदर आने वाले आईपीएल में पद संभालना पसंद करेगा? पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार तृणमूल ने कहा कि यह 'राजनीतिक प्रतिशोध' का एक उदाहरण है कि गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को बीसीसीआई के सचिव के रूप में दूसरा कार्यकाल मिल सकता है, लेकिन गांगुली इसके अध्यक्ष के रूप में ऐसा नहीं कर सकते।
जय शाह ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है और अगर कोई अन्य उम्मीदवार नहीं आता है तो वह लगातार दूसरी बार बीसीसीआई सचिव के रूप में बने रहेंगे।
बता दें कि बीसीसीआई ने राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि को ख़त्म करने की व्यवस्था की थी। इसका मलतब है कि कोई अधिकारी लगातार दो कार्यकाल तक उस पद पर बना रह सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर हामी भर दी है।
पहले इन पदों पर लगातार दो कार्यकाल तक कोई नहीं रह सकता था। इसके लिए कूलिंग-ऑफ़ अवधि होनी चाहिए थी। लेकिन अब प्रशासकों को लगातार दो कार्यकाल के बाद ही कूलिंग-ऑफ़ पीरियड से गुजरना होगा।
सौरव गांगुली और बीजेपी को लेकर तब और कयास लगाए जाने लगे थे जब इस साल अमित शाह सौरव गांगुली के घर रात के खाने पर पहुँचे थे। मई महीने में अमित शाह ने गांगुली के साथ उनके दक्षिण कोलकाता स्थित घर पर डिनर किया था। रात्रिभोज में परिवार के क़रीबी सदस्य ही शामिल रहे थे। डिनर के बाद गांगुली ने मीडिया से कहा था कि इसे लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है।
इसके बाद जून महीने में फिर से तब गांगुली के राजनीति में शामिल होने के कयास लगाए जाने लगे थे जब उन्होंने एक ट्वीट किया था।
उनके इस ट्वीट के बाद कयास लगाया जाने लगा था कि क्या वह राजनीति में करियर आजमाना चाहते हैं? ऐसा इसलिए भी कि गांगुली ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को कोलकाता में अपने आवास पर रात्रिभोज आयोजित किया था। अमित शाह के साथ डिनर से पहले गांगुली ने कहा था, 'मैं उन्हें 2008 से जानता हूं। मैं उनके बेटे के साथ काम करता हूं। वह हमारे घर आ रहे हैं, और हमारे साथ खाना खाएंगे।'
बहरहाल, अमित शाह का ज़िक्र करते हुए तृणमूल नेता ने कहा है कि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता इस साल मई में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान के घर रात के खाने के लिए गए थे। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार घोष ने कहा, 'मुझे लगता है कि सौरव स्थिति को समझाने के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति हैं। अगर उनके पास स्थिति की कोई राजनीतिक व्याख्या है, तो मुझे नहीं पता कि वह कितना साफ़ कर सकते हैं।'
टीएमसी के इन आरोपों को बीजेपी ने निराधार बताते हुए कहा है कि पार्टी ने कभी भी गांगुली को शामिल करने की कोशिश नहीं की।
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है, 'हमें नहीं पता कि बीजेपी ने सौरव गांगुली को पार्टी में शामिल करने की कोशिश कब की। सौरव गांगुली क्रिकेट के दिग्गज हैं। कुछ लोग अब बीसीसीआई में बदलाव को लेकर घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं। क्या उनकी कोई भूमिका थी जब उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष का पद संभाला था। तृणमूल को हर मुद्दे का राजनीतिकरण करना बंद कर देना चाहिए।'
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