मोहम्मद सिराज या फिर कप्तान विराट कोहली के सिराज मियां आज लॉर्ड्स टेस्ट की जीत के बाद सबसे बड़े हीरो उनकर उभरें हैं। तो क्या हुआ यदि सिराज को क्रिकेट के मक्का में पूरे मैच में 8 विकेट लेने के बावजूद मैन ऑफ़ द मैच का ख़िताब ना मिला… तो क्या हुआ यदि सिराज इस टीम के सबसे कम अनुभवी गेंदबाज़ हैं… सबसे बड़ी और अहम बात ये है कि सिर्फ 7 मैचों के छोटे से टेस्ट करियर में हैदराबाद के इस गेंदबाज़ ने वर्ल्ड क्लास गेंदबाज़ के तौर पर खुद को साबित किया है।
जसप्रीत बुमराह से पहले इरफान पठान उन चुनिंदा युवा गेंदबाज़ों में से एक रहे हैं जो आते ही टेस्ट क्रिकेट में छा गये। आम-तौर पर किसी भी गेंदबाज़ को टेस्ट क्रिकेट के व्याकरण से रूबरु होने में ही 8-10 टेस्ट निकल जाया करते हैं जिसे अधिकतर कोच और एक्सपर्ट ‘लर्निंग कर्व’ यानी सीखने का दौर कह कर रियायत दे देते हैं।
लेकिन, सिराज को शुरुआत से ही ज़िंदगी ने एहसास करा दिया कि उन्हें क्रिकेट के करियर में बहुत रियायत नहीं मिलने वाली है। एक ऑटो चलाने वाले शख्स के बेटे का आईपीएल की चकाचौंध में करोड़पति बनना अब हैरतअंगेज़ नहीं बल्कि आम कहानी हो चली है लेकिन अपनी रफ्तार, सीम, स्विंग और अदभुत कौशल से दिग्गजों को क्रिकेट के सबसे मुश्किल फॉर्मेट में पस्त करना एक ख़ास बात है।
विराट कोहली जानते हैं कि सिराज खास हैं तभी तो आईपीएल में वो सिराज को हैदराबाद से खींचकर अपने बैंगलोर में ले आये। आईपीएल भले ही सफेद गेंद की क्रिकेट है और इसमें फटाफट नतीजे भी आते हैं लेकिन यहां भी कोहली ने सिराज को अपनी ही शैली में खेलने की आज़ादी दी।
पाक क्रिकेटर की झलक सिराज में?
ये शैली किसी भारतीय गेंदबाज़ की शैली ना होकर आपको पाकिस्तान के पूर्व दिग्गज गेंदबाज़ों की याद दिलाता है। सिराज जब अपने रन अप में दौड़ते हैं तो आपको वकार यूनिस की झलक मिलती है। हर गेंद पर विकेट लेने का वही जोश और चेहरे पर आक्रामकता के स्थायी भाव आपको आकिब जावेद की याद दिला सकते हैं।
सिराज अनोखे हैं। उन्होंने अपनी अलग पहचान बनायी है। सिराज न तो ईशांत शर्मा की तरह अंडर 19 के दिनों से ही भविष्य के सितारे मान लिये गये और न ही जसप्रीत बुमराह की तरह अनोखे एक्शन ने उन्हें किसी तरह से भीड़ से अलग किया।
सिराज के पास न तो मोहम्मद शमी वाली चतुराई है और न ही गेंदों को दोनों तरफ़ स्विंग कराने का हुनर। और न ही उमेश यादव की तरह शारीरिक तौर पर बेहद शानदार देह जो बिना थके लंबे स्पैल डाल सकती है। इसके बावजूद अगर कोहली को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पहले टेस्ट की टीम चुनने के दौरान बचपन के साथी और सबसे अनुभवी ईशांत और सिराज के बीच एक को चुनने का कठिन विकल्प आया तो उन्होंने सिराज को ही चुना।
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आखिर, भारतीय क्रिकेट में ऐसा कितने मौकों पर हुआ है कि एक युवा तेज़ गेंदबाज़ विकल्प के तौर पर आये और अपने पहले दौरे पर ही छा जाये। 2020-21 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर सिराज ने तो यही किया था। ईशांत शर्मा के चोटिल होने पर टीम में शामिल हुए सिराज को उस दौरे पर अचानक से ही वो ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी जिसके लिए कोई भी कैसे तैयार हो सकता था?
शमी और बुमराह दोनों उस सीरीज के दौरान अनफिट हो गये और यही हाल उमेश यादव का रहा। लेकिन, सिराज को शायद ऐसे ही मौके की तलाश थी और उन्होंने अपना जलवा बिखेरा। ऑस्ट्रेलिया में उनकी रफ्तार और आक्रामकता को देखते हुए सिराज की गेंदबाज़ी ने कंगारुओं को युवा विराट कोहली की याद दिलायी जो बड़े से बड़े स्टेज पर आकर किसी से नहीं घबराता था।
दिग्गजों को सिराज ने बनाया अपना फैन
चार साल पहले तक सिराज को कोई घरेलू क्रिकेट में नहीं पूछता था। लेकिन 2016-17 सीज़न में सिराज ने हैदराबाद के लिए 41 विकेट लिए और उस सीज़न वह रणजी ट्रॉफी के टॉप 3 गेंदबाज़ों में शुमार रहे। लाल गेंद से लंबा स्पैल बिना थके, बिना मुरझाये चलते रहने की बात ने उन्हें इंडिया ए के कोच राहुल द्रविड़ को अपना मुरीद बनाया। आईपीएल में जब वो चुने गये तो ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कोच टॉम मूडी उनसे बहुत प्रभावित थे। सनराइजर्स के कप्तान डेविड वार्नर ने वीवीएस लक्ष्मण को निजी तौर पर कहा कि ये लड़का आईपीएल का नहीं टीम इंडिया का स्टार साबित होगा। लक्ष्मण ने सिराज को हैदराबाद में उस बच्चे की तरह देखा है जो उनसे ऑटोग्राफ लेने आया तो क्रिकेट के ऐसे सवाल कर गया जो उस उम्र के खिलाड़ियों को दूर दूर तक पता नहीं होते हैं।
कोहली को ऐसे ही जोशीले जज़्बे की तलाश
27 साल के सिराज भाग्यशाली हैं कि टीम इंडिया की कमान कोहली जैसे खिलाड़ी के हाथ में है जिसने विदेशी ज़मीं पर अपना पताका लहराने के लिए तेज़ गेंदबाज़ों की चौकड़ी पर ही अपना भरोसा रखा है। अगर सिराज को लॉर्ड्स टेस्ट में आप सिर्फ एक लम्हें से याद रखना चाहते हैं तो मोईन अली को आउट करने से पहले वाला उनका ओवर देखिये। अपने कौशल से अली को 6 की 6 गेंदों में एक ही तरह से सिराज परास्त कर रहे थे। आपको अनायास ही 1990 के दशक वाले पाकिस्तान गेंदबाज़ों की याद आ जायेगी।
मेरी पीढ़ी को हमेशा इस बात की कसक रहती थी कि भारत में ऐसे गेंदबाज़ क्यों नहीं पैदा होते हैं। नई सदी का भारत न सिर्फ सिराज जैसे चैंपियन गेंदबाज़ पैदा कर रहा है बल्कि अब उसका पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी ये सोचकर हैरान हो रहा है कि महान बल्लेबाज़ों की दौड़ में हमेशा मात देना वाला इंडिया अब उनकी पारंपरिक ताकत यानी तेज़ गेंदबाज़ी में भी उन्हें कैसे मात दे रहा है। शमी और सिराज की कामयाबी पाकिस्तानियों को बेबसी में ही ये कहने को शायद मजबूर करती होगी कि- सही में यार हिंदुस्तान और इसके तेज़ गेंदबाज़ों की बात ही अब कुछ और है!
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