सोशल मीडिया पर धार्मिक उन्माद फैलाने और किसी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत और डर का माहौल बनाने वालों के ख़िलाफ अदालत ने सख़्त रवैया अपनाया है। तेलंगाना हाई कोर्ट ने ट्विटर से कहा है कि वह बताए कि जब कुछ लोग इसके प्लैटफ़ॉर्म का इस्तेमाल कर इसलाम के ख़िलाफ़ नफ़रत फैला रहे थे, वह चुप क्यों रहा? अदालत ने इस अमेरिकी कंपनी से यह भी पूछा है कि उसने पहले दिये नोटिस का जवाब क्यों नहीं दिया।
जस्टिस राघवेंद्र सिंह चौहान और जस्टिस बी. विजयन रेड्डी के खंडपीठ ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया।
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बेंच ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आदेश में ट्विटर को फटकार लगाते हुए कहा है कि कोरोना संक्रमण को किसी धर्म से जोड़ना पूरी तरह ग़लत है और इससे जुड़े ट्वीट को सिर्फ डिलीट कर देना पर्याप्त नहीं है।
क्या है मामला?
वकील ख़्वाजा ऐजाज़ुद्दीन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह शिकायत की थी कि कुछ हैशटैग से इसलाम के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाया जा रहा है, इसके लिए ट्विटर का इस्तेमाल किया जा रहा है और ट्विटर इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर पा रहा है।याचिका में कहा गया था कि ट्विटर पर #Islamiccoronavirusjiha, #Coronajihad, #Tablighijamat, #Nizamuddinidiots और #TablighiJamatVirus जैसे हैशटैग को ट्रेंड कराया गया था। इनमें कोरोना फैलने के लिए सीधे तौर पर मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।
निशाने पर मुसलमान
याद दिला दें कि मार्च में दिल्ली में तबलीग़ी जमात का एक कार्यक्रम हुआ था जिसके बाद कुछ लोग इसके मुख्यालय में टिके रह गए। उन्हें बाद में वहाँ से निकाला गया, इनमें से कई कोरोना से संक्रमित पाए गए, जिन्हें दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों और क्वरेन्टाइन केंद्रों में रखा गया।लेकिन इसके बाद सोशल मीडिया और मुख्य धारा की मीडिया के एक बड़े हिस्से पर इस तरह की सामग्री चलाई गई कि देश में कोरोना फैलने के लिए मुसलमान ज़िम्मेदार हैं। यह भी कहा गया कि मुसलिम संगठन जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के कुछ प्रवक्ताओं ने खुले आम कहा कि कोरोना के लिए मुसलमान ज़िम्मेदार हैं और वे अपने कहे पर टिके रहे।
फ़ेक ऑडियो क्लिप
तबलीगी जमात के प्रमुख की पहले की कही गई बातों को एडिट कर और उसमें बाहर से कुछ चीजें जोड़ कर ऐसा ऑडियो क्लिप तैयार किया गया जिससे यह लगे कि वह मुसलमानों से कोरोना में सहयोग नहीं करने की अपील कर रहे हैं। ख़ुद दिल्ली पुलिस ने अपनी जाँच में यह माना था।उत्तर प्रदेश में स्थिति सबसे बुरी थी। मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश और ज़िलों के प्रशासनिक अधिकारियों तक का पूरा लाव लश्कर, सब का एक ही नारा था- कोविड-19 वायरस के फैलाव के लिए अकेले ज़िम्मेदार तब्लीग़ी जमात के लोग हैं। समूचे अप्रैल माह में 'कोरोना बम', 'कोरोना आतंक', 'देश द्रोही', राष्ट्र विरोधी'- समाज के सबसे ख़तरनाक शत्रु आदि के तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला ऐसा कोई फ़िक़रा नहीं था, जिससे इन तब्लीग़ियों को नहीं नवाज़ा गया।
यूपी के 20 ज़िलों में 1 मई तक तब्लीग़ी जमता के लगभग 3 हज़ार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके ख़िलाफ़ 'आईपीसी' की महामारी संबंधी और 'महामारी एक्ट' की अनेक कठोर धाराओं में चालान किया गया था। ज़्यादातर को कोर्ट ने या तो बॉन्ड भरवाकर छोड़ दिया, या फिर ज़मानत पर रिहा कर दिया।
ऐसे में अदालत का यह आदेश बेहद अहम है और इससे इसलामोफ़ोबिया फैलाने वालों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।
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