पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
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चंपाई सोरेन
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पुलवामा में सीआरपीएफ़ काफ़िले पर आतंकी हमले के बाद सोशल मीडिया पर फ़ेक न्यूज़ की बाढ़-सी ला दी गयी है। किसी में भावनाओं को कुरेदा जा रहा है तो किसी में मुसलिमों से हिंदुओं में डर दिखाया जा रहा है। किसी फ़ेक न्यूज़ में राहुल को आतंकियों के साथ तो किसी में श्रद्धांजलि सभा में प्रियंका को हँसते हुए बताया जा रहा है। फ़ोटोशॉप कर विदेश की तसवीरों और वीडियो को डरावना बता कर एक नैरेटिव गढ़ा जा रहा है। यहाँ सवाल उठता है कि क्या फ़ेक न्यूज़ गढ़कर देशभक्त और राष्ट्रवादी बना जा सकता है? यदि यह देशभक्ति नहीं है तो इसे कौन बना या बनवा रहा है? या फिर इससे किसे फ़ायदा होगा? चुनाव से पहले यह कहीं राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश तो नहीं है?
इन सवालों का जवाब भी सोशल मीडिया पर ही मिल जाता है। फ़ेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करने वाली ख़बरों को ट्वीट करते हुए कपिल नाम के एक ट्विटर हैंडल से लिखा गया है, 'इन ट्वीट की शृंखला को देखें कि कैसे बीजेपी सोशल मीडिया और फ़ेक न्यूज़ गढ़ने वाली टीमें पुलवामा हमले को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।' फ़ेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करने वाली 'बूम लाइव वेबसाइट' की ऐसी ख़बरों से भी कुछ ऐसे ही संकेत मिलते हैं। वेबसाइट ने पुलवामा हमले के बाद वीडियो, तसवीरों और टेक्स्ट मैसेज वाली कई फ़ेक न्यूज़ का भंडाफोड़ किया है।
Thread to see how BJP Social Media and Fake Content Generation teams are using #PulwamaAttack for political benefits.
— Kapil (@kapsology) February 17, 2019
👇 https://t.co/1UN7IzPK2h
छह साल पुराने वीडियो को सोशल मीडिया पर अब शेयर किया जा रहा है। वीडियो मैसेज में बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री एक शहीद की पत्नी से बातचीत कर रहे हैं और सांत्वना दे रहे हैं। जबकि यह वीडियो छह साल पुराना है। यह वीडियो 2014 के चुनाव से पहले 2013 में पटना की एक रैली के दौरान विस्फोट में मारे गये एक व्यक्ति की पत्नी का है। मारे गये व्यक्ति सेना के जवान नहीं थे। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उन्हें शहीद कहना शुरू कर दिया था। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और वह मृतक की पत्नी से बात करते हैं। बूम लाइव ने इस वीडियो की पड़ताल की है।
एक वीडियो ट्वीट किया गया, जिसमें प्रियंका गाँधी पुलवामा हमले के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में हँसती हुई दिखती हैं। बूम लाइव ने पड़ताल कर इसे फ़र्ज़ी क़रार दिया है। बता दें कि प्रियंका ने अभी राजनीति में क़दम रखा है और बीजेपी के लिए इन्हें बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है। इस फ़ेक न्यूज़ से साफ़ है कि प्रियंका के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बनाया जा रहा है। उनके ख़िलाफ़ झूठ फैला कर बेहद घटिया और बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं।
What is there to smile @priyankagandhi unless it was ur project and u happy with its success.
— #GauravPradhan 🇮🇳 (@DrGPradhan) February 15, 2019
Hawaldar shine, @rssurjewala, @KapilSibal comment suggest that it was 10JP project
Is it true? pic.twitter.com/CgkCGzreR6
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रहा है। वॉट्सऐप पर वायरल वीडियो के साथ में मैसेज लिखा गया है कि एक शॉपिंग मॉल में आतंकी साज़िश का पर्दाफाश किया गया। इसी वीडियो को फ़ेसबुक पर भी शेयर करते हुए लिखा गया है कि इसलामिक ज़िहादी आतंकी को 14 फ़रवरी को रंगे हाथों ग़िरफ़्तार किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि यह वीडियो मुंबई में एक मॉकड्रिल का है। इसमें सुरक्षा से जुड़ी अलग-अलग टीमों ने मॉकड्रिल की है। इस फ़ेक न्यूज़ का मक़सद साफ़ तौर पर आतंकवाद से लड़ने में सरकार की तत्परता को दिखाना था।
साल 2018 के एक वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है जिसमें लिखा है कि पुलवामा हमले का सेना ने बदला ले लिया है। इसमें यह भी लिखा है कि 'मिशन की शुरुआत हो गई तीन शुअरों को मार गिराया गया।' यह फ़ेक न्यूज़ है। यह वीडियो साल 2018 का है, जबकि सरकार की सफलता बताने के लिए इसे पुलवामा हमले के बाद का बताकर गुमराह किया जा रहा है। बूम लाइव ने 2018 के वीडियो की पुष्टि के लिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर का लिंक भी दिया है।
Mission started. Already killed 3 pigs#IndiaWantsRevenge pic.twitter.com/5Ie64BqjCn
— Jaswant Singh (@JasBJP) February 16, 2019
पुलवामा में आतंकी हमले का असर हर देशवासियों पर हुआ। लोगों में आक्रोश दिखा। ज़ाहिर सी बात है कि यह ग़स्सा ख़ुद को सबसे बड़ी राष्ट्रवादी पार्टी कहने वाली बीजेपी सरकार पर दिख रहा है। हर तरफ़ से सरकार पर इसके लिए दबाव बनने लगा। सोशल मीडिया पर भी आतंकी कार्रवाई रोक पाने में नाकाम रहने का बीजेपी की सरकार पर आरोप लगाए जाने लगे। इसी बीच सोशल मीडिया पर ऐसी फ़ेक न्यूज़ की बाढ़ सी ला दी गयी। इनमें से अधिकतर फ़ेक न्यूज़ बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाती दिखीं। 'राष्ट्रवादी' विचार से हमदर्दी रखने वाले सोशल मीडिया के लोगों ने ऐसे फ़ेक न्यूज़ को फैलाना शुरू कर दिया।
ज़ाहिर है कि इसे चुनाव से पहले नकारात्मक असर को कम करने के प्रयास के तौर पर प्रचार के रूप में देखा गया।
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