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अतीक का क़त्ल और लाइव कमेंट्री!

दिल्ली का ओखला,

ओखला का दवा बाजार

तीन दुकानदार और कहानी ब्रेकिंग न्यूज़ की।

ब्रेकिंग न्यूज वैसे तो कुछ दिन पुरानी है लेकिन आज भी नई है। वैसे तो हर दूसरे सेकंड किसी न किसी न्यूज चैनल पर चमकती है, लेकिन ये असली ब्रेकिंग न्यूज थी।

अरे, इन्होंने अतीक को मार दिया… ये थी खबर जो सनसनी बन कर फैल रही थी हर तरफ। मुझे हैरानी नहीं हुई, क्योंकि मैं कुछ ही पल पहले अपने मोबाइल पर एक हिंदी अखबार का अलर्ट देख कर अलर्ट हो चुका था। वैसे पहली बार तो मैं चौंका, लगा कि शायद सस्ते इवनिंगर अखबारों के फर्जी अलर्ट जैसा ही कुछ होगा, अतीक को गोली मार दी गई, अब ये अतीक हो सकता है कोई अनजाना आदमी हो, जिसको किसी की दुश्मनी में मार दिया गया और अखबार ने अपने Viewers बढ़ाने के लिए Misleading headline लगा दी, ताकि सियासी डॉन अतीक अहमद को जानने वाले चौंक कर पूरी ख़बर पढ़ जाएं, औऱ पढ़ने के बाद उन्हें समझ में आएगा कि ये वो अतीक अहमद डॉन नहीं था, ये तो अतीक अहमद Common man था जिसे मार दिया गया।

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मैंने भी कार किनारे पार्क कर पूरी ख़बर पढ़ ली थी। इतना ही नहीं, फिर भी जब ख़बर पर यक़ीन नहीं हुआ तो गुगल बाबा पर ये ख़बर डाल कर चेक करनी शुरू कर दी और हर जगह डॉन अतीक के बेटे के इनकाउंटर वाली ख़बर ही दिखती रही। लेकिन धीरे-धीरे एक दो वेबसाइट्स ने ब्रेकिंग न्यूज रंगनी शुरू कर दी और मेरा अविश्वास धीरे धीरे विश्वास में बदलता गया। कार से उतर कर दवा खरीदने दुकान में घुसा ही था कि सिर पर सफेद टोपी लगाए, मिड एजेड आदमी ने अपने मोबाइल को बंदूक की तरह तानते हुए घोषणा कर दी, अरे इन्होंने अतीक को मार दिया। उसकी आवाज़ ब्रेकिंग न्यूज चिल्लानेवाले किसी भी न्यूज एंकर से ज्यादा तीखी और चुभने वाली थी। अरे, इन्होंने अतीक को मार दिया।

उसकी नज़रें मोबाइल पर चिपकी हुई थीं, मैं कैसे चुप रहता। ज्ञान की गंगा बहानी थी। जैसे उसने मुझी से तो सवाल पूछा था, मैंने कहा – “हां मार दिया, अतीक ही नहीं उसके भाई को भी गोली मारी गई है…” ...मैंने और सूचनाएँ जोड़ दीं, बिन मांगे ही जैसे मैं खुद ब्रेकिंग न्यूज देने वाला एंकर बन गया। दुकान के बीचों बीच जैसे न्यूज स्टूडियो प्रकट हो गया। तेज लाइटें जल उठीं, मेरा मेकअप किया जाने लगा, कान में आवाजें गूंजने लगीं, ऑडियो चेक – वन टू थ्री, सर जरा कुछ बोलेंगे।

लोग इधर उधर दौड़ने लगे, चीखते हुए कि ख़बर काटो काटो काटो काटो, लगा जैसे अचानक ही मैं दवा की दुकान से उठ कर खबरों की दुकान में घुस गया था, जो खबर चाहिए, मिलेगी कुछ दाम दे कर कुछ फ्री में। तो  दोस्तो, मैं एक ब्रेकिंग न्यूज एंकर बन कर बोलने लगा –“हां मार दिया है अतीक को, उसके भाई को भी गोली मारी गई है, इलाहाबाद, अरे नहीं प्रयागराज में। सरकारी अस्पताल के बाहर मारा है। कनपटी से सटा कर गोली मारी गई, बचने का स्कोप ही नहीं था।” 
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दिल्ली के ओखला इलाके की उस दवा की दुकान की रंगत बदल चुकी थी। ब्रेकिंग न्यूज जैसे जैसे बड़ी होती जा रही थी, वैसे ही उस न्यूज की दुकान में खड़े तीन दुकानदारों की आँखें भी हैरानी से फैलती जा रही थीं। मैंने कहा– “अतीक और उसके भाई को पुलिसवाले मेडिकल करवाने लाए थे अस्पताल।”

अरे वीडियो भी आ गया, अरे यार, ये तो खुलेआम गोलियां चला रहे हैं, कैमरे लगे हुए हैं, पुलिसवाले खड़े हुए हैं, उनके सामने ही फायरिंग। ये मेरे लिए नया था, क्योंकि तब तक मैंने एक या दो स्टिल पिक्चर तो देखी थी लेकिन वीडियो फायरिंग का आना मेरे लिए ब्रेकिंग न्यूज थी।

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पत्रकारों की जबान में ख़बर पक नहीं चुकी थी, ये खबर तो खौल रही थी। मैंने पूछा, अच्छा वीडियो भी आ गया। हां सर, वीडियो में ऑडियो भी है, गोलियों की आवाजें हैं, तीन लोग अटैक कर रहे हैं… मुझे लगा कि वीडियो तो देखना चाहिए, मगर मैं तो यहां दवा लेने आया हूं, दुकान में घुसने के बाद ब्रेकिंग न्यूज के एंकर बदलते जा रहे थे, पहले दुकानदार बना, फिर मैं और अब वीडियो देख कर हैरानी से चीख रहा वो दुकानदार फिर से मुझे धकेल कर ब्रेकिंग न्यूज का एंकर बन बैठा था। इस ब्रेकिंग न्यूज में अब दो दो एंकर आ चुके थे। दवा की दुकान, ब्रेकिंग न्यूज की दुकान बन चुकी थी, और कभी कैमरा उस पर फोकस करता तो कभी मुझपर। मैंने बोला, पुलिसवाले भी भाग रहे हैं, जवाब मिला सर ऐसे में क्या वहां खड़े रहेंगे, गोली चल रही थी, हर इंसान अपनी जान बचाता है ऐसे में। मैंने कहा – “अगर फौजी सरहद पर लड़ते वक्त भी यही सोचेगा तो गोलियों से बचने की कोशिश ही करता रह जाएगा। पुलिस वालों की ड्यूटी थी कैदी चाहे कोई भी हो, खूनी हो, बलात्कारी हो, अपराधी हो, जब तक वो कानून के पास है, उसी कानून को उसकी रखवाली करनी होगी।”
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अनुराग सिंह
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