किसान दिल्ली पहुँच रहे हैं। कई तो पहुँच भी चुके। चारों दिशाओं में आयोजकों ने उनके इकट्ठा होने के पड़ाव बनाए हैं जहाँ से वे रामलीला मैदान के लिए कूच कर चुके हैं जहाँ शुक्रवार को उनके दिल्ली मार्च की किसान सभा होनी है।
पहले भी दिल्ली आए हैं किसान
किसान बहुत बार दिल्ली आए हैं पर दिल्ली उनकी सुनती कम है सो इस बार वे ज्यादा संगठित तरीके से अपना सवाल पेश कर रहे हैं।दो सौ से ज्यादा किसान और किसानी से जुड़े दूसरे संगठनों (कुछ राष्ट्रीय स्तर के हैं पर बहुमत क्षेत्रीय संगठनों का है) मसलन खेत मज़दूर आदि ने मिलकर जून 2017 में एक राष्ट्रीय ढाँचा खड़ा किया, ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC)। इन्होंने दो माँगों को राष्ट्रव्यापी स्वीकृत पाया। पहला कर्ज़ मुक्ति और दूसरा फसल के गारंटीशुदा दाम।
मुंबई में पिछले बरस जब सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर छालों से रिसते ख़ून वाले पैरों के साथ जब किसान पहुँचे थे तो देश का ज़मीर रो दिया था। शर्मिंदा हुआ था। अन्नदाता को भिखारी बनाने के गुनाह में उसकी मूक सहमति कोई कम बड़ा अपराध नहीं। इस मार्च ने हौसला दिया।
फ़ैसला लेने पर करेंगे मजबूर
मंदसौर गोलीकांड पर उपजे क्रोध ने देशभर में किसानों के बीच किसानों की हालत को लेकर एक बहस की गुंजाइश बढ़ाई है। किसानों के संगठनों को इसका अंदाज़ा लग गया है। अब उन्होंने अजेंडा तय कर लिया है और कार्यक्रम भी। वे संसद को किसानों के उपरोक्त दो सवालों पर विशेष सत्र बुलाने और फ़ैसला लेने पर मजबूर करने आये हैं।
मई 2018 में वे राष्ट्रपति से मिले और उन्हें ज्ञापन देकर विशेष सत्र की माँग को वैधानिक तर्क दिया और इसके बाद वे देश की इक्कीस पार्टियों को अपने प्रस्ताव पर राज़ी करने में कामयाब हुए। असर इतना हुआ कि इन माँगों पर लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश भी हो गए।कृषि मामलों के विद्वान देविंदर शर्मा ने पिछले दिनों बताया था कि आजादी के बाद पूँजीपतियों की आय लाखों गुना बढ़ी, नौकरीपेशा लोगों की दो सौ गुना बढ़ी पर किसान की कुल उन्नीस गुना बढ़ी। इसी के चलते किसानी तबाह है और किसान सूली पर।पर अब बस, किसान यही कहने दिल्ली आए हैं और जानते हैं कि किसी धर्म की कोई संसद, किसी कुंभ में उनके लिए कोई प्रस्ताव पास नहीं करने वाली!
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